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सामान्य हिन्दी

11. मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ
1. मुहावरे

      सामान्य अर्थ का बोध न कराकर विशेष अथवा विलक्षण अर्थ का बोध कराने वाले पदबन्ध को मुहावरा कहते हैँ। इन्हेँ वाग्धारा भी कहते हैँ।

      मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है, जो रचना मेँ अपना विशेष अर्थ प्रकट करता है। रचना मेँ भावगत सौन्दर्य की दृष्टि से मुहावरोँ का विशेष महत्त्व है। इनके प्रयोग से भाषा सरस, रोचक एवं प्रभावपूर्ण बन जाती है। इनके मूल रूप मेँ कभी परिवर्तन नहीँ होता अर्थात् इनमेँ से किसी भी शब्द का पर्यायवाची शब्द प्रयुक्त नहीँ किया जा सकता। हाँ, क्रिया पद मेँ काल, पुरुष, वचन आदि के अनुसार परिवर्तन अवश्य होता है। मुहावरा अपूर्ण वाक्य होता है। वाक्य प्रयोग करते समय यह वाक्य का अभिन्न अंग बन जाता है। मुहावरे के प्रयोग से वाक्य मेँ व्यंग्यार्थ उत्पन्न होता है। अतः मुहावरे का शाब्दिक अर्थ न लेकर उसका भावार्थ ग्रहण करना चाहिए।
प्रमुख मुहावरे व उनका अर्थ:
अंग–अंग खिल उठना
– प्रसन्न हो जाना।
अंग छूना
– कसम खाना।
अंग–अंग टूटना
– सारे बदन में दर्द होना।
अंग–अंग ढीला होना
– बहुत थक जाना।
अंग–अंग मुसकाना
– बहुत प्रसन्न होना।
अंग–अंग फूले न समाना
– बहुत आनंदित होना।
अंगड़ाना
– अंगड़ाई लेना, जबरन पहन लेना।
अंकुश रखना
– नियंत्रण रखना।
अंग लगाना
– लिपटाना।
अंगारा होना
– क्रोध मेँ लाल हो जाना।
अंगारा उगलना
– जली–कटी सुनाना।
अंगारोँ पर पैर रखना
– जोखिम मोल लेना।
अँगूठे पर मारना
– परवाह न करना।
अँगूठा दिखाना
– निराश करना या तिरस्कारपूर्वक मना करना।
अंगूर खट्टे होना
– प्राप्त न होने पर उस वस्तु को रद्दी बताना।
अंजर–पंजर ढीला होना
– अंग–अंग ढीला होना।
अंडा फूट जाना
– भेद खुल जाना।
अंधा बनाना
– ठगना।
अँधे की लकड़ी/लाठी
– एकमात्र सहारा।
अंधे को चिराग दिखाना
– मूर्ख को उपदेश देना।
अंधाधुंध
– बिना सोचे–विचारे।
अंधानुकरण करना
– बिना विचारे अनुकरण करना।
अंधेर खाता
– अव्यवस्था।
अंधेर नगरी
– वह स्थान जहाँ कोई नियम व्यवस्था न हो।
अंधे के हाथ बटेर लगना
– बिना प्रयास भारी चीज पा लेना।
अंधोँ मेँ काना राजा
– अयोग्य व्यक्तियोँ के बीच कम योग्य भी बहुत योग्य होता है।
अँधेरे घर का उजाला
– अति सुन्दर/इकलौती सन्तान।
अँधेरे मेँ रखना
– भेद छिपाना।
अँधेरे मुँह
– पौ फटते।
अंधेरे–उजाले
– समय–कुसमय।
अकड़ना
– घमण्ड करना।
अक्ल का दुश्मन
– मूर्ख।
अक्ल चकराना
– कुछ समझ में न आना।
अक्ल का अंधा होना
– बेअक्ल होना।
अक्ल आना
– समझ आना।
अक्ल का कसूर
– बुद्धि दोष।
अक्ल काम न करना
– कुछ समझ न आना।
अक्ल के घोड़े दौड़ाना
– तरह–तरह की कल्पना करना।
अक्ल के तोते उड़ना
– होश ठिकाने न रहना।
अक्ल के बखिए उधेड़ना
– बुद्धि नष्ट कर देना।
अक्ल जाती रहना
– घबरा जाना।
अक्ल ठिकाने होना
– होश मेँ आना।
अक्ल ठिकाने ला देना
– समझा देना।
अक्ल से दूर/बाहर होना
– समझ मेँ न आना।
अक्ल का पूरा
– मूर्ख।
अक्ल पर पत्थर पड़ना
– बुद्धि से काम न लेना।
अक्ल चरने जाना
– बुद्धि का न होना।
अक्ल का पुतला
– बुद्धिमान।
अक्ल के पीछे लठ लिए फिरना
– मूर्खता का काम करना।
अपनी खिचड़ी खुद पकाना
– मिलजुल कर न रहना।
अपना उल्लू सीधा करना
– स्वार्थ सिद्ध करना।
अपना सा मुँह लेकर रहना
– लज्जित होना।
अरमान निकालना
– मन का गुबार पूरा करना।
अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना
– अपनी बड़ाई आप करना।
अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना
– जानबूझकर अपना नुकसान करना।
अपना राग अलापना
– अपनी ही बातोँ पर बल देना।
अगर–मगर करना
– बहाना करना।
अटकलेँ भिड़ाना
– उपाय सोचना।
अपने पैरोँ पर खड़ा होना
– स्वावलंबी होना।
अक्षर से भेँट न होना
– अनपढ़ होना।
अटखेलियाँ करना
– किलोल करना।
अडंगा करना
– होते कार्य मेँ बाधा डालना।
अड़ पकड़ना
– जिद करना/पनाह मेँ आना।
अता होना
– मिलना।
अथाह मेँ पड़ना
– मुश्किल मेँ पड़ना।
अदब करना
– सम्मान करना।
अधर मेँ झूलना
– दुविधा मेँ रहना।
अधूरा जाना
– असमय गर्भपात होना।
अनसूनी करना
– जानबूझकर उपेक्षा करना।
अनी की चोट
– सामने की चोट।
अपनी–अपनी पड़ना
– सबको अपनी चिँता होना।
अपनी नीँद सोना
– इच्छानुसार कार्य करना।
अपना हाथ जगन्नाथ
– स्वाधिकार होना।
अरण्य रोदन
– निष्फल निवेदन।
अवसर चूकना
– सुयोग का लाभ न उठाना।
अवसर ताकना
– मौका ढूँढना।
आँख का तारा
– बहुत प्यारा होना/अति प्रिय।
आँख उठाना
– क्रोध से देखना।
आँख बन्द कर काम करना
– ध्यान न देना।
आँख चुराना
– छिपना।
आँख मारना
– इशारा करना।
आँख तरसना
– देखने के लालायित होना।
आँख फेर लेना
– प्रतिकूल होना।
आँख बिछाना
– प्रतीक्षा करना।
आँखें सेंकना
– सुंदर वस्तु को देखते रहना।
आँख उठाना
– देखने का साहस करना।
आँख खुलना
– होश आना।
आँख लगना
– नींद आना अथवा प्यार होना।
आँखों पर परदा पड़ना
– लोभ के कारण सच्चाई न दीखना।
आँखों में समाना
– दिल में बस जाना।
आँखे चुराना
– अनदेखा करना।
आँखेँ चार होना
– आमने–सामने होना/प्रेम होना।
आँखेँ दिखाना
– गुस्से से देखना।
आँखेँ फेरना
– बदल जाना, प्रतिकूल होना।
आँखेँ पथरा जाना
– देखते–देखते थक जाना।
आँखे बिछाना
– प्रेम से स्वागत करना।
आँखोँ का काँटा होना
– बुरा लगना/अप्रिय व्यक्ति।
आँखोँ पर बिठाना
– आदर करना।
आँखोँ मेँ धूल झोँकना
– धोखा देना।
आँखोँ का पानी ढलना
– निर्लज्ज बन जाना।
आँखोँ से गिरना
– आदर समाप्त होना।
आँखोँ पर परदा पड़ना
– बुद्धि भ्रष्ट होना।
आँखोँ मेँ रात कटना
– रात–भर जागते रहना।
आँच न आने देना
– थोड़ी भी हानि न होने देना।
आँसू पीकर रह जाना
– भीतर ही भीतर दुःखी होना।
आकाश के तारे तोड़ना
– असम्भव कार्य करना।
आकाश–पाताल एक करना
– कठिन प्रयत्न करना।
आग मेँ घी डालना
– क्रोध और अधिक बढ़ाना।
आग से खेलना
– जानबूझकर मुसीबत मेँ फँसना।
आग पर पानी डालना
– उत्तेजित व्यक्ति को शान्त करना।
आटे–दाल का भाव मालूम होना
– कठिनाई मेँ पड़ जाना।
आसमान से बातेँ करना
– ऊँची कल्पना करना।
आड़े हाथ लेना
– खरी–खरी सुनाना।
आसमान सिर पर उठाना
– बहुत शोर करना।
आँचल पसारना
– भीख माँगना।
आँधी के आम होना
– बहुत सस्ती वस्तु मिलना।
आँसू पोँछना
– धीरज देना।
आग–पानी का बैर
– स्वाभाविक शत्रुता।
आसमान पर चढ़ना
– बहुत अधिक अभिमान करना।
आग–बबूला होना
– बहुत क्रोध करना।
आपे से बाहर होना
– अत्यधिक क्रोध से काबू मेँ न रहना।
आकाश का फूल
– अप्राप्य वस्तु।
आसमान पर उड़ना
– अभिमानी होना।
आस्तीन का साँप
– विश्वासघाती मित्र।
आकाश चूमना
– बहुत ऊँचा होना।
आग लगने पर कुआँ खोदना
– पहले से कोई उपाय न कर रखना।
आग लगाकर तमाशा देखना
– झगड़ा पैदा करके खुश होना।
आटे के साथ घुन पिसना
– दोषी के साथ निर्दोषी की भी हानि होना।
आधा तीतर आधा बटेर
– बेमेल काम।
आसमान के तारे तोड़ना
– असंभव कार्य करना।
आसमान फट पड़ना
– अचानक आफत आ पड़ना।
आँचल देना
– दूध पिलाना।
आँचल मेँ गाँठ बाँधना
– अच्छी तरह याद कर लेना।
आँचल फैलाना
– अति विनम्रता पूर्वक प्रार्थना करना।
आँधी उठना
– हलचल मचना।
आँसू गिराना
– रोना।
आँसूओँ से मुँह धोना
– बहुत रोना।
आकाश कुसुम
– अनहोनी बात।
आकाश खुलना
– बादल हटना।
आकाश–पाताल का अन्तर होना
– बहुत बड़ा अन्तर।
आग का पुतला
– बहुत क्रोधी।
आग के मोल
– बहुत महँगा।
आग लगाना
– झगड़ा कराना।
आग मेँ कूदना
– स्वयं को खतरे मेँ डालना।
आग पर लोटना
– बेचैन होना/ईर्ष्या करना।
आग बुझा लेना
– कसर निकालना।
आग भी न लगाना
– तुच्छ समझना।
आग मेँ झोँकना
– अनिष्ट मेँ डाल देना।
आग से पानी होना
– क्रोधावस्था से एकदम शान्त हो जाना।
आगे–पीछे की सोचना
– भावी परिणाम पर दृष्टि रखना।
आगे करना
– हाजिर करना/अगुआ करना/आड़ लेना।
आगे–पिछे फिरना
– खुशामद करना।
आगे होकर फिरना
– आगे बढ़कर स्वागत करना।
आज–कल करना
– टालमटोल करना।
ईँट का जवाब पत्थर से देना
– किसी के आरोप का करारा जवाब देना/कड़ाई से पेश आना।
ईँट से ईँट बजाना
– नष्ट–भ्रष्ट कर देना/विनाश करना।
इधर–उधर की लगाना
– चुगली करना।
इधर–उधर की हाँकना
– व्यर्थ की गप्पे मारना।
ईद का चाँद होना
– बहुत दिनोँ बाद दिखाई देना।
उँगली उठाना
– लाँछन लगाना/दोष निकालना।
उँगली पर नचाना
– वश मेँ करना/अपनी इच्छानुसार चलाना।
उँगली पकड़कर पहुँचा पकड़ना
– तनिक–सा सहारा पाकर पूरे पर अधिकार जमा लेना/मन की बात ताड़ जाना।
उल्टी गंगा बहाना
– नियम के विरुद्ध कार्य करना।
उल्लू बनाना
– मूर्ख बनाना।
उल्लू सीधा करना
– स्वार्थ सिद्ध करना।
उधेड़बुन मेँ पड़ना
– सोच–विचार करना।
उन्नीस बीस का अंतर होना
– बहुत कम अंतर होना।
उड़ती चिड़िया पहचानना
– किसी की गुप्त बात जान लेना।
उल्टी माला फेरना
– बुरा सोचना।
उल्टे उस्तरे से मूँडना
– धृष्टतापूर्वक ठगना।
उठा न रखना
– कमी न छोड़ना।
उल्टी पट्टी पढ़ाना
– और का और कहकर बहकाना।
एक आँख से देखना
– सबको बराबर समझना।
एक और एक ग्यारह होना
– मेल मेँ शक्ति होना।
एड़ी–चोटी का जोर लगाना
– पूरी शक्ति लगाकर कार्य करना।
एक लाठी से हाँकना
– अच्छे–बुरे का विचार किए बिना समान व्यवहार करना।
एक घाट पानी पीना
– एकता और सहनशीलता होना।
एक ही थैली के चट्टे–बट्टे
– सब एक से, सभी समान रूप से बुरे व्यक्ति।
एक हाथ से ताली न बजना
– किसी एक पक्ष का दोष न होना।
एक ही नौका मेँ सवार होना
– एक समान परिस्थिति मेँ होना, किसी भी कार्य के लिए सभी पक्षोँ की सक्रियता अनिवार्य होती है।
एक आँख न भाना
– तनिक भी अच्छा न लगना।
ओँठ चबाना
– क्रोध प्रकट करना।
ओखली मेँ सिर देना
– जानबूझकर विपत्ति मेँ फँसना।
कंठ का हार होना
– अत्यंत प्रिय होना।
कंगाली मेँ आटा गीला
– गरीबी मेँ और अधिक हानि होना।
कंधे से कंधा मिलाना
– पूरा सहयोग करना।
कच्चा चिट्ठा खोलना
– भेद खोलना, छिपे हुए दोष बताना।
कच्ची गोली खेलना
– अनुभवी न होना।
कलेजा टूक टूक होना
– शोक में दुखी होना।
कटी पतंग होना
– निराश्रित होना।
कलेजा ठण्डा होना
– संतोष होना।
कलई खुलना
– पोल खुलना।
कमर कसना
– तैयार होना/किसी कार्य को दृढ़ निश्चय के साथ करना।
कठपुतली होना
– दूसरे के इशारे पर चलना।
कलेजा थामना
– दुःख सहने के लिए कलेजा कड़ा करना।
कमर टूटना
– कमजोर पड़ जाना/हतोत्साहित होना।
कब्र मेँ पैर लटकना
– मृत्यु के समीप होना।
कढ़ी का सा उबाल
– मामूली जोश।
कड़वे घूँट पीना
– कष्टदायक बात सहन कर जाना।
कलेजा छलनी होना
– बहुत दुःखी होना।
कलेजा निकालकर रख देना
– सब कुछ समर्पित कर देना।
कलेजा फटना
– असहनीय दुःख होना।
कलेजा मुँह को आना
– व्याकुल होना या घबरा जाना।
कलेजे का टुकड़ा
– अत्यधिक प्रिय होना।
कलेजे पर पत्थर रखना
– चुपचाप सहन करना।
कलेजे पर साँप लोटना
– ईर्ष्या से जलना।
कसौटी पर कसना
– परखना/परीक्षा लेना।
कटे पर नमक छिड़कना
– दुःखी को और दुःखी करना।
काँटे बिछाना
– मार्ग मेँ बाधा उत्पन्न करना।
कागज काले करना
– व्यर्थ लिखना।
काठ का उल्लू
– अत्यंत मूर्ख।
कान खड़े होना
– सावधान होना।
कान पर जूँ न रेँगना
– असर न होना।
कान मेँ फूँक मारना
– प्रभावित करना।
कान भरना
– चुगली करना।
कान लगाकर सुनना
– ध्यान से सुनना।
कानोँ मेँ तेल/रुई डालना
– ध्यान न देना।
काम आना
– युद्ध मेँ मरना।
काम तमाम करना
– मार देना।
काया पलट होना
– बिल्कुल बदल जाना।
कालिख पोतना
– बदनाम करना।
कागज की नाव
– अस्थायी/क्षण भंगुर।
कान कतरना
– मात करना/बहुत चतुर होना।
कान का कच्चा
– हर किसी बात पर विश्वास करने वाला।
कागजी घोड़े दौड़ाना
– केवल लिखा–पढ़ी करते रहना/बहुत पत्र व्यवहार करना।
कानोँ मेँ उँगली देना
– कोई आश्चर्यकारी बात सुनकर दंग रहना।
काल के गाल मेँ जाना
– मृत्यु–पथ पर बढ़ना।
किताब का कीड़ा
– हर समय पढ़ते रहना।
कीचड़ उछालना
– बदनामी करना/नीचता दिखाना/कलंक लगाना।
कुएँ मेँ बाँस डालना
– बहुत दूर तक खोज करना।
कुएँ मेँ भांग पड़ना
– सब की बुद्धि मारी जाना।
कोल्हू का बैल
– कड़ी मेहनत करते रहने वाला।
कौड़ी के मोल बिकना
– अत्यधिक सस्ता होना।
कौड़ी–कौड़ी पर जान देना
– कंजूस होना।
खटाई मेँ पड़ना
– टल जाना/काम मेँ रुकावट आना।
खाक मेँ मिलना
– नष्ट हो जाना।
खाक मेँ मिलाना
– नष्ट कर देना।
ख्याली पुलाव बनाना
– कपोल कल्पनाएँ करना।
खालाजी का घर
– आसान काम।
खाक छानना
– बेकार फिरना/दर–दर भटकना।
खिचड़ी पकाना
– गुप्त रूप से षड्यंत्र रचना।
खून का प्यासा
– भयंकर दुश्मनी/शत्रु।
खून का घूँट पीना
– क्रोध को अंदर ही अंदर सहना।
खून सूखना
– डर जाना।
खून खौलना
– जोश मेँ आना।
खून–पसीना एक करना
– बहुत परिश्रम करना।
खून सफेद हो जाना
– दया न रह जाना।
खेत रहना
– मारा जाना।
गंगा नहाना
– बड़ा कार्य कर देना।
गत बनाना
– पीटना।
गर्दन उठाना
– विरोध करना।
गले का हार
– अत्यंत प्रिय।
गड़े मुर्दे उखाड़ना
– पिछली बुरी बातेँ याद करना।
गर्दन पर सवार होना
– पीछे पड़े रहना।
गज भर की छाती होना
– साहसी होना।
गाँठ बाँधना
– अच्छी तरह याद रखना।
गाल बजाना
– डीँग मारना।
गागर मेँ सागर भरना
– थोड़े मेँ बहुत कुछ कहना।
गाजर मूली समझना
– तुच्छ समझना।
गिरगिट की तरह रंग बदलना
– बहुत जल्दी अपनी बात से बदलना।
गीदड़ भभकी
– दिखावटी धमकी।
गुड़–गोबर करना
– बना बनाया कार्य बिगाड़ देना।
गुल खिलाना
– कोई बखेड़ा खड़ा करना/ऐसा कार्य करना जो दूसरोँ को उचित न लगे।
गुदड़ी मेँ लाल होना
– गरीबी मेँ भी गुणवान होना।
गूलर का फूल
– दुर्लभ का व्यक्ति या वस्तु।
गेहूँ के साथ घुन पिसना
– दोषी के साथ निर्दोष पर भी संकट आना।
गोबर गणेश
– बिल्कुल बुद्धू/निरा मूर्ख।
घर फूँककर तमाशा देखना
– अपनी हानि करके मौज उड़ाना।
घड़ोँ पानी पड़ना
– बहुत लज्जित होना।
घड़ी मेँ तोला घड़ी मेँ माशा
– अस्थिर चित्त वाला व्यक्ति।
घर मेँ गंगा बहाना
– बिना कठिनाई के कोई अच्छी वस्तु पास मेँ ही मिल जाना।
घास खोदना
– व्यर्थ समय गँवाना।
घाट–घाट का पानी पीना
– बहुत अनुभवी होना।
घाव पर नमक छिड़कना
– दुःखी को और दुःख देना।
घी के दिये जलाना
– बहुत खुशियाँ मनाना।
घुटने टेक देना
– हार मान लेना।
घोड़े बेचकर सोना
– निश्चिन्त होना।
चलती चक्की मेँ रोड़ा अटकाना
– कार्य मेँ बाधा डालना।
चंडाल चौकड़ी
– निकम्मे बदमाश लोग।
चप्पा–चप्पा छान मारना
– हर जगह ढूँढ लेना।
चाँदी का जूता
– घूस का धन।
चाँदी का जूता देना
– रिश्वत देना।
चाँदी होना
– लाभ ही लाभ होना।
चादर से बाहर पैर पसारना
– आमदनी से अधिक खर्च करना।
चादर तानकर सोना
– निश्चिँत होना।
चार चाँद लगाना
– शोभा बढ़ाना।
चार दिन की चाँदनी
– थोड़े दिनोँ का सुख/अस्थायी वैभव।
चिकना घड़ा
– बेशर्म।
चिकना घड़ा होना
– कोई प्रभाव न पड़ना।
चिराग तले अँधेरा
– दूसरोँ को उपदेश देने वाले व्यक्ति का स्वयं अच्छा आचरण नहीँ करना।
चिकनी–चुपड़ी बातेँ करना
– मीठी–मीठी बातेँ करके धोखा देना/चापलूसी करना।
चीँटी के पर निकलना
– नष्ट होने के करीब होना/अधिक घमण्ड करना।
चुटिया हाथ मेँ होना
– वश मेँ होना।
चुल्लू भर पानी मेँ डूब मरना
– लज्जा का अनुभव करना/शर्म के मारे मुँह न दिखाना।
चूना लगाना
– धोखा देना।
चूड़ियाँ पहनना
– औरतोँ की तरह कायरता दिखाना।
चेहरे पर हवाईयाँ उड़ना
– घबरा जाना।
चैन की बंशी बजाना
– सुख से रहना।
चोटी का पसीना एड़ी तक आना
– कड़ा परिश्रम करना।
चोली दामन का साथ
– घनिष्ठ सम्बन्ध।
चौदहवीँ का चाँद
– बहुत सुन्दर।
छक्के छुड़ाना
– बुरी तरह हरा देना।
छठी का दूध याद आना
– घोर संकट मेँ पड़ना/संकट मेँ पिछले सुख की याद आना।
छप्पर फाड़कर देना
– अचानक लाभ होना/बिना प्रयास के सम्पत्ति मिलना।
छाती पर पत्थर रखना
– चुपचाप दुःख सहन करना।
छाती पर साँप लोटना
– बहुत ईर्ष्या करना।
छाती पर मूँग दलना
– बहुत परेशान करना/कष्ट देना।
छूमन्तर होना
– गायब हो जाना।
छोटे मुँह बड़ी बात करना
– अपनी हैसियत से ज्यादा बात कहना।
जंगल मेँ मंगल होना
– उजाड़ मेँ चहल–पहल होना।
जमीन पर पैर न रखना
– अधिक घमण्ड करना।
जहर का घूँट पीना
– असह्य बात सहन कर लेना।
जलती आग मेँ कूदना
– विपत्ति मेँ पड़ना।
जबान पर चढ़ना
– याद आना।
जबान मेँ लगाम न होना
– बेमतलब बोलते जाना।
जमीन आसमान एक करना
– सब उपाय कर डालना।
जमीन आसमान का फर्क
– बहुत भारी अंतर।
जलती आग मेँ तेल डालना
– और भड़काना।
जहर उगलना
– कड़वी बातेँ करना।
जान के लाले पड़ना
– गम्भीर संकट मेँ पड़ना।
जान पर खेलना
– मुसीबत मेँ रहकर काम करना।
जान हथेली पर रखना
– प्राणोँ की परवाह न करना।
जी चुराना
– किसी काम से दूर भागना।
जी का जंजाल
– व्यर्थ का झंझट।
जी भर जाना
– हृदय द्रवित होना।
जीती मक्खी निगलना
– जानबूझकर बेईमानी करना।
जी पर आ बनना
– मुसीबत मेँ आ फँसना।
जी चुराना
– काम करने से कतराना।
जूतियाँ चटकाना/तोड़ना
– मारे–मारे फिरना।
जूतियाँ/जूते चाटना
– चापलूसी करना।
जूतियोँ मेँ दाल बाँटना
– लड़ाई झगड़ा हो जाना।
जोड़–तोड़ करना
– उपाय करना।
झक मारना
– व्यर्थ परिश्रम करना।
झाडू फिराना
– सब कुछ बर्बाद कर देना।
झोली भरना
– अपेक्षा से अधिक देना।
टका–सा जवाब देना
– दो टूक/रूखा उत्तर देना या मना करना।
टट्टी की ओट मेँ शिकार खेलना
– छिपकर षड्यन्त्र रचना।
टका–सा मुँह लेकर रह जाना
– लज्जित हो जाना।
टाँग अड़ाना
– हस्तक्षेप करना।
टाँय–टाँय फिस हो जाना
– काम बिगड़ जाना।
टेढ़ी उँगली से घी निकालना
– शक्ति से कार्य सिद्ध करना।
टेढ़ी खीर
– कठिन काम।
टूट पड़ना
– सहसा आक्रमण कर देना।
टोपी उछालना
– अपमान करना।
ठंडा पड़ना
– क्रोध शान्त होना।
ठन–ठन गोपाल
– निर्धन व्यक्ति/खोखला।
ठिकाने आना
– ठीक स्थान पर आना।
ठीकरा फोड़ना
– दोष लगाना।
ठोकर खाना
– हानि उठाना।
डंका बजाना
– ख्याति होना/प्रभाव जमाना/घोषणा करना।
डंके की चोट कहना
– स्पष्ट कहना।
डकार जाना
– किसी की चीज को लेकर न देना/माल पचा जाना।
डोरी ढीली छोड़ना
– नियन्त्रण मेँ ढील देना।
डोरे डालना
– प्रेम मेँ फँसाना।
ढपोरशंख होना
– झूठा या गप्पी आदमी।
ढाई दिन की बादशाहत
– थोड़े दिन की मौज–बहार।
ढिँढोरा पीटना
– अति प्रचारित करना/सबको बताना।
ढोल मेँ पोल होना
– थोथा या सारहीन।
तलवे चाटना
– खुशामद करना।
तार–तार होना
– पूरी तरह फट जाना।
तारे गिनना
– रात को नीँद न आना/व्यग्रता से प्रतीक्षा करना।
तिल का ताड़ करना
– बढ़ा चढ़ाकर बातेँ करना।
तितर–बितर होना
– बिखर कर भाग जाना।
तीन का तेरह होना
– अलग–अलग होना।
तूती बोलना
– खूब प्रभाव होना।
तेल की कचौड़ियोँ पर गवाही देना
– सस्ते मेँ काम करना।
तेली का बैल होना
– हर समय काम मेँ लगे रहना।
तेवर चढ़ाना
– गुस्सा होना।
थाह लेना
– पता लगाना।
थाली का बैँगन
– लाभ–हानि देखकर पक्ष बदलने वाला व्यक्ति/सिद्धान्तहीन व्यक्ति।
थूककर चाटना
– बात कहकर बदल जाना।
दबे पाँव चलना
– ऐसे चलना जिससे चलने की कोई आहट न हो।
दमड़ी के लिए चमड़ी उधेड़ना
– मामूली सी बात के लिए भारी दण्ड देना।
दम तोड़ देना
– मृत्यु को प्राप्त होना।
दाँतोँ तले उँगली दबाना
– आश्चर्य करना/हैरान होना।
दाँत पीसना
– क्रोध करना।
दाँत पीसकर रहना
– क्रोध पीकर चुप रहना।
दाँत काटी रोटी होना
– घनिष्ठ मित्रता।
दाँत उखाड़ना
– कड़ा दण्ड देना।
दाँत खट्टे करना
– परास्त करना/नीचा दिखाना।
दाई से पेट छिपाना
– परिचित से रहस्य को छिपाये रखना।
दाने–दाने को तरसना
– अत्यंत गरीब होना।
दाल मेँ काला होना
– सन्देहपूर्ण होना/गड़बड़ होना।
दाल न गलना
– वश नहीँ चलना/सफल न होना।
दाहिना हाथ होना
– अत्यन्त विश्वासपात्र बनना/बहुत बड़ा सहायक।
दामन पकड़ना
– सहारा लेना।
दाना–पानी उठना
– जगह छोड़ना।
दिन फिरना
– भाग्य पलटना।
दिन मेँ तारे दिखाई देना
– घबरा जाना/अजीब हालत होना।
दिन–रात एक करना
– खूब परिश्रम करना।
दिन दूनी रात चौगुनी होना
– बहुत जल्दी–जल्दी होना।
दिमाग आसमान पर चढ़ना
– बहुत घमण्ड होना।
दुम दबाकर भागना
– डर के मारे भागना।
दूध का दूध और पानी का पानी
– उचित न्याय करना।
दूध का धुला/धोया होना
– निर्दोष या निष्कलंक होना।
दूध के दाँत न टूटना
– ज्ञान और अनुभव का न होना।
दो दिन का मेहमान
– जल्दी मरने वाला।
दो नावोँ पर पैर रखना
– दोनोँ तरफ रहना/एक साथ दो लक्ष्योँ को पाने की चेष्टा करना।
दो टूक जवाब देना
– साफ–साफ उत्तर देना।
दौड़–धूप करना
– कठोर श्रम करना।
दृष्टि फेरना
– अप्रसन्न होना।
धज्जियाँ उड़ाना
– नष्ट–भ्रष्ट करना।
धरती पर पाँव न पड़ना
– अभिमान मेँ रहना।
धूल फाँकना
– व्यर्थ मेँ भटकना।
धूप मेँ बाल सफेद करना
– अनुभवहीन होना।
धूल मेँ मिल जाना
– नष्ट हो जाना।
नकेल हाथ मेँ होना
– वश मेँ होना।
नमक मिर्च लगाना
– बात बढ़ा–चढ़ाकर कहना।
नाक कटना
– बदनामी होना।
नाक काटना
– अपमानित करना।
नाक चोटी काटकर हाथ मेँ देना
– दुर्दशा करना।
नाक भौँ चढ़ाना
– घृणा या असन्तोष प्रकट करना।
नाक पर मक्खी न बैठने देना
– बहुत साफ रहना/अपने पर आँच न आने देना।
नाक रगड़ना
– दीनता दिखाना।
नाक रखना
– मान रखना।
नाक में दम करना
– बहुत तंग करना।
नाक का बाल होना
– किसी के ज्यादा निकट होना।
नाकोँ चने चबाना
– बहुत तंग करना।
नानी याद आना
– कठिनाई मेँ पड़ना/घबरा जाना।
निन्यानवेँ के फेर मेँ पड़ना
– पैसा जोड़ने के चक्कर मेँ पड़ना।
नीला–पीला होना
– गुस्से होना।
नौ दो ग्यारह होना
– भाग जाना।
नौ दिन चले ढाई कोस
– बहुत धीमी गति से कार्य करना।
पगड़ी उछालना
– बेइज्जत करना।
पगड़ी रखना
– इज्जत रखना।
पसीना–पसीना होना
– बहुत थक जाना।
पहाड़ टूट पड़ना
– भारी विपत्ति आ जाना।
पाँचोँ उँगलियाँ घी मेँ होना
– सब ओर से लाभ होना।
पाँव उखड़ना
– हारकर भाग जाना।
पाँव फूँक–फूँक कर रखना
– सावधानी से कार्य करना।
पानी-पानी होना
– अत्यधिक लज्जित होना।
पानी में आग लगाना
– शांति भंगकर देना।
पानी फेर देना
– निराश कर देना।
पानी भरना
– तुच्छ लगना।
पानी पी–पीकर कोसना
– गालियाँ बकते जाना।
पानी का मोल होना
– बहुत सस्ता।
पापड़ बेलना
– बेकार जीवन बिताना।
पीठ दिखाना
– कायरता का आचरण करना।
पेट काटना
– अपने ऊपर थोड़ा खर्च करना।
पेट मेँ चूहे दौड़ना/कूदना
– भूख लगना।
पेट बाँधकर रहना
– भूखे रहना।
पेट मेँ रखना
– बात छिपाकर रखना।
पेट मेँ दाढ़ी होना
– दिखने मेँ सीधा, परन्तु चालाक होना।
पैर उखड़ना
– भागने पर विवश होना।
पैर जमीन पर न टिकना
– प्रसन्न होना, अभिमानी होना।
पैरोँ तले से जमीन निकल/खिसक/सरक जाना
– होश उड़ जाना।
पैरोँ मेँ मेँहदी लगाकर बैठना
– कहीँ जा न सकना।
पौ बारह होना
– खूब लाभ होना।
प्राण हथेली पर लिए फिरना
– जीवन की परवाह न करना।
फट पड़ना
– एकदम गुस्से मेँ हो जाना।
फूँक–फूँककर कदम रखना
– सावधानी बरतना।
फूटी आँख न सुहाना
– अच्छा न लगना।
फूला न समाना
– अत्यधिक खुश होना।
फूलकर कूप्पा होना
– बहुत खुश या बहुत नाराज होना।
बंदर घुड़की/भभकी
– प्रभावहीन धमकी।
बखिया उधेड़ना
– भेद खोलना।
बछिया का ताऊ
– मूर्ख।
बट्टा लगना
– कलंक लगना।
बड़े घर की हवा खाना
– जेल जाना।
बरस पड़ना
– अति क्रुद्ध होकर डाँटना।
बल्लियोँ उछलना
– बहुत प्रसन्न होना।
बाँए हाथ का खेल
– बहुत सरल काम।
बाँछे खिल जाना
– अत्यंत प्रसन्न होना।
बाजार गर्म होना
– काम–धंधा तेज होना।
बात का धनी होना
– वचन का पक्का होना।
बाल की खाल निकालना
– नुकता–चीनी करना/बहुत तर्क–वितर्क करना।
बाल बाँका न होना/कर सकना
– कुछ भी नुकसान न होना/कर सकना।
बाल–बाल बचना
– बड़ी कठिनाई से बचना।
बासी कढ़ी मेँ उबाल आना
– समय बीत जाने पर इच्छा जागना।
बिल्ली के गल्ले मेँ घंटी बाँधना
– अपने को संकट मेँ डालना।
बेपेँदी का लोटा
– ढुलमुल/पक्ष बदलने वाला।
भंडा फोड़ना
– भेद खोल देना।
भाड़ झोँकना
– समय व्यर्थ खोना।
भाड़े का टट्टू
– पैसे लेकर ही काम करने वाला।
भीगी बिल्ली बनना
– सहम जाना।
भैँस के आगे बीन बजाना
– मूर्ख आदमी को उपदेश देना।
मक्खन लगाना
– चापलूसी करना।
मक्खियाँ मारना
– बेकार रहना।
मन के लड्डू
– मनमोदक/कल्पना करना।
माथा ठनकना
– संदेह होना।
मिट्टी का माधो
– बिल्कुल बुद्धू।
मिट्टी खराब करना
– बुरा हाल करना।
मिट्टी मेँ मिल जाना
– बर्बाद होना।
मुँहतोड़ जवाब देना
– बदले मेँ करारी चोट करना।
मुँह की खाना
– हार मानना।
मुँह में पानी भर आना
– खाने को जी ललचाना।
मुँह खून लगना
– रिश्वत लेने की आदत पड़ जाना।
मुँह छिपाना
– लज्जित होना।
मुँह रखना
– मान रखना।
मुँह पर कालिख पोतना
– कलंक लगाना।
मुँह उतरना
– उदास होना।
मुँह ताकना
– दूसरे पर आश्रित होना।
मुँह बंद करना
– चुप कर देना।
मुट्ठी मेँ होना
– वश मेँ होना।
मुट्ठी गर्म करना
– रिश्वत देना।
मोहर लगा देना
– पुष्टि करना।
मौत सिर पर खेलना
– मृत्यु समीप होना।
रंग उड़ना
– घबरा जाना।
रंग मेँ भंग पड़ना
– आनन्दपूर्ण कार्य मेँ बाधा पड़ना।
रंग बदलना
– परिवर्तन होना।
रंगा सियार होना
– धोखा देने वाला।
रफूचक्कर होना
– भाग जाना।
राई का पहाड़ बनाना
– जरा–सी बात को बढ़ा–चढ़ाकर प्रस्तुत करना।
रोँगटे खड़े होना
– डर से रोमांचित होना।
रोड़ा अटकाना
– बाधा डालना।
रोम–रोम खिल उठना
– प्रसन्न होना।
लँगोटी मेँ फाग खेलना
– गरीबी मेँ आनन्द लूटना।
लकीर पीटना
– पुरानी रीति पर चलना।
लकीर का फकीर होना
– प्राचीन परम्पराओँ को सख्ती से मानने वाला।
लड़ाई मोल लेना
– झगड़ा पैदा करना।
लट्टू होना
– मस्त होना/मोहित होना।
ललाट मेँ लिखा होना
– भाग्य मेँ बदा होना।
लहू का घूँट पीना
– अपमान सहन करना।
लाख का घर राख
– धनी का निर्धन हो जाना।
लाल–पीला होना
– क्रोधित होना।
लुटिया डुबोना
– काम बिगाड़ना।
लेने के देने पड़ना
– लाभ के स्थान पर हानि होना।
लोहा मानना
– किसी की शक्ति स्वीकार करना।
लोहे के चने चबाना
– कठिन काम करना/बहुत संघर्ष करना।
विष उगलना
– द्वेषपूर्ण बातेँ करना/बुरा–भला कहना।
शहद लगाकर चाटना
– तुच्छ वस्तु को महत्त्व देना।
शिकार हाथ लगना
– आसामी मिलना।
शैतान की आँत
– लम्बी बात।
शैतान के कान कतरना
– बहुत चालाक होना।
श्रीगणेश करना
– शुरु करना।
सब्ज बाग दिखाना
– कोरा लोभ देकर बहकाना।
साँप को दूध पिलाना
– दुष्ट की रक्षा करना।
साँप–छछूंदर की गति होना
– असंमजस या दुविधा की दशा होना।
साँप सूँघ जाना
– गुप–चुप हो जाना।
सात घाट का पानी पीना
– विस्तृत अनुभव होना।
सिँदूर चढ़ाना
– लड़की का विवाह होना।
सिट्टी–पिट्टी गुम हो जाना
– होश उड़ जाना।
सितारा चमकना
– भाग्यशाली होना।
सिर पर कफना बाँधना
– बलिदान देने के लिए तैयार होना।
सिर पर सवार होना
– पीछे पड़ना।
सिर पर चढ़ना
– मुँह लगना।
सिर मढ़ना
– जिम्मे लगाना।
सिर मुँड़ाते ओले पड़ना
– काम शुरु होते ही बाधा आना।
सिर से बला टलना
– मुसीबत से पीछा छुटना।
सिर आँखोँ पर रखना
– आदर सहित आज्ञा मानना।
सिर पर हाथ होना
– सहारा होना, वरदहस्त होना।
सिर पर भूत सवार होना
– धुन लगाना।
सिर पर मौत खेलना
– मृत्यु समीप होना।
सिर पर खून सवार होना
– मरने-मारने को तैयार होना।
सिर–धड़ की बाजी लगाना
– प्राणों की भी परवाह न करना।
सिर नीचा करना
– लजा जाना।
सिर उठाना
– विद्रोह करना।
सिर ओखली मेँ देना
– जान–बूझकर मुसीबत मोल लेना।
सिर पर चढ़ाना
– अत्यधिक मनमानी करने की छूट देना।
सिर से पानी गुजरना
– सहनशीलता समाप्त होना।
सिर पर पाँव रखकर भागना
– तेजी से भागना।
सिर धुनना
– पछताना।
सीँग काटकर बछड़ोँ मेँ मिलना
– बूढ़े होकर भी बच्चोँ जैसा काम करना।
सूखे धान पर पानी पड़ना
– दशा सुधरना।
सूर्य को दीपक दिखाना
– अत्यन्त प्रसिद्ध व्यक्ति का परिचय देना।
सोने की चिड़िया हाथ से निकलना
– लाभपूर्ण वस्तु से वंचित रहना।
सोने पर सुहागा होना
– अच्छी वस्तु का और अधिक अच्छा होना।
हक्का–बक्का रहना
– आश्चर्यचकित होना/हैरान रह जाना।
हथियार डाल देना
– हार मान लेना।
हवाई किले बनाना
– थोथी कल्पना करना।
हथेली पर सरसोँ उगना
– कम समय मेँ अधिक कार्य करना।
हजामत बनाना
– लूटना/ठगना।
हथेली पर जान लिए फिरना
– मरने की परवाह न करना।
हवा लगना
– असर पड़ना।
हवा से बातें करना
– बहुत तेज दौड़ना।
हवा हो जाना
– गायब हो जाना/भाग जाना।
हवा पलटना
– समय बदल जाना।
हवा का रुख पहचानना
– अवसर की आवश्यकता को पहचानना।
हाथ का मैल
– साधारण चीज।
हाथ कट जाना
– परवश होना।
हाथ मेँ करना
– अपने वश मेँ करना।
हाथ को हाथ न सूझना
– घना अन्धकार होना।
हाथ खाली होना
– रुपया-पैसा न होना।
हाथ खींचना
– साथ न देना।
हाथ पे हाथ धरकर बैठना
– निकम्मा होना/बिना कार्य के बैठे रहना।
हाथों के तोते उड़ना
– दुःख से हैरान होना/अचानक घबरा जाना।
हाथोंहाथ
– बहुत जल्दी/तत्काल।
हाथ मलते रह जाना
– पछताना।
हाथ साफ करना
– चुरा लेना/बेईमानी से लेना।
हाथ–पाँव मारना
– प्रयास करना।
हाथ–पाँव फूलना
– घबरा जाना।
हाथ डालना
– शुरू करना।
हाथ फैलाना
– माँगना।
हाथ धोकर पीछे पड़ना
– बुरी तरह पीछे पड़ना/पीछा न छोड़ना।
हिन्दी की चिन्दी निकालना
– बात की तह तक पहुँचना।
हुक्का–पानी बन्द कर देना
– जाति से बाहर कर देना।
हुलिया बिगाड़ना
– दुर्गत करना।

♦♦♦

2. लोकोक्तियाँ (कहावतेँ)

      लोकोक्ति का अर्थ है, लोक की उक्ति अर्थात् जन–कथन। लोकोक्तियाँ अथवा कहावतेँ लोक–जीवन की किसी घटना या अन्तर्कथा से जुड़ी रहती हैँ। इनका जन्म लोक–जीवन मेँ ही होता है। प्रत्येक लोकोक्ति समाज मेँ प्रचलित होने से पूर्व मेँ अनेक बार लोगोँ के अनुभव की कसौटी पर कसी गई है और सभी लोगोँ के अनुभव उस लोकोक्ति के साथ एक से रहे हैँ, तब वह कथन सर्वमान्य रूप से हमारे सामने है। लोकोक्तियाँ दिखने मेँ छोटी लगती हैँ, परन्तु उनमेँ अधिक भाव रहता है। लोकोक्तियोँ के प्रयोग से रचना मेँ भावगत विशेषता आ जाती है।

मुहावरे एवं लोकोक्ति मेँ अन्तर–
      मुहावरा वाक्यांश होता है तथा इसके अन्त मेँ ‘होना’, ‘जाना’, ‘देना’, ‘करना’ आदि क्रिया का मूल रूप रहता है, जिसका वाक्य मेँ प्रयोग करते समय लिँग, वचन, काल, कारक आदि के अनुसार रूप बदल जाता है। जबकि लोकोक्ति अपने आप मेँ पूर्ण वाक्य होती है और प्रयोग स्वतन्त्र वाक्य की तरह ज्योँ का त्योँ होता है


प्रमुख लोकोक्तियाँ व उनका अर्थ:
अंडा सिखावे बच्चे को चीं-चीं मत कर
– छोटे के द्वारा बड़े को उपदेश देना।
अंडे सेवे कोई, बच्चे लेवे कोई
– परिश्रम कोई करे लाभ किसी और को मिले।
अंडे होंगे तो बच्चे बहुतेरे हो जाएंगे
– मूल वस्तु रहने पर उससे बनने वाली वस्तुऍं मिल ही जाती हैं।
अंत भला सो सब भला
– कार्य का परिणाम सही हो जाए तो सारी गलतियाँ भुला दी जाती हैं।
अंत भले का भला
– भलाई करने वाले का भला ही होता है।
अंधा बाँटे रेवड़ी फिर-फिर अपनोँ को देय
– अपने अधिकार का लाभ अपने लोगों को ही पहुँचाना।
अंधा क्या चाहे, दो आँखें
– मनचाही वस्तु प्राप्त होना।
अंधा क्या जाने बसंत बहार
– जो वस्तु देखी ही नहीं गई, उसका आनंद कैसे जाना जा सकता है।
अंधा पीसे कुत्ता‍ खाय
– एक की मजबूरी से दूसरे को लाभ हो जाता है।
अंधा बगुला कीचड़ खाय
– भाग्यहीन को सुख नहीं मिलता।
अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी
– बराबर वाली जोड़ी बनना।
अंधे अंधा ठेलिया दोनों कूप पड़ंत
– दो मूर्ख एक दूसरे की सहायता करें तो भी दोनों को हानि ही होती है।
अंधे की लाठी
– बेसहारे का सहारा।
अंधे के आगे रोये, अपनी आँखें खोये
– मूर्ख को ज्ञान देना बेकार है।
अंधे के हाथ बटेर लगना
– अनायास ही मनचाही वस्तु मिल जाना।
अंधे को अंधा कहने से बुरा लगता है
– किसी के सामने उसका दोष बताने से उसे बुरा ही लगता है।
अंधे को अँधेरे में बड़े दूर की सूझी
– मूर्ख को बुद्धिमत्ता की बात सूझना।
अंधेर नगरी चौपट राजा , टके सेर भाजी टके सेर खाजा
– जहाँ मुखिया मूर्ख हो और न्याय अन्याय का ख्याल न रखता हो।
अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता
– अकेला व्यक्ति किसी बड़े काम को सम्पन्न करने में समर्थ नहीं हो सकता।
अकेला हँसता भला न रोता भला
– सुख हो या दु:ख साथी की जरूरत पड़ती ही है।
अक्ल बड़ी या भैंस
– शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का अधिक महत्व होता है।
अच्छी मति जो चाहों, बूढ़े पूछन जाओ
– बड़े-बूढ़ों के अनुभव का लाभ उठाना चाहिये।
अटकेगा सो भटकेगा
– दुविधा या सोच-विचार में पड़ने से काम नहीं होता।
अधजल गगरी छलकत जाए
– ओछा आदमी थोड़ा गुण या धन होने पर इतराने लगता है।
अनजान सुजान, सदा कल्याण
– मूर्ख और ज्ञानी सदा सुखी रहते हैं।
अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत
– नुकसान हो जाने के बाद पछताना बेकार है।
अढ़ाई हाथ की ककड़ी, नौ हाथ का बीज
– अनहोनी बात।
बिन माँगे मोती मिले, माँगे मिले न भीख
– सौभाग्य से कोई बढ़िया चीज़ अपने-आप मिल जाती है और दुर्भाग्य से घटिया चीज़ प्रयत्न करने पर भी नहीं मिलती।
अपना-अपना कमाना, अपना-अपना खाना
– किसी दूसरे के भरोसे नहीं रहना।
अपना ढेंढर देखे नहीं, दूसरे की फुल्ली निहारे
– अपने बड़े से बड़े दुर्गुण को न देखना पर दूसरे के छोटे से छोटे अवगुण की चर्चा करना।
अपना मकान कोट समान
– अपना घर सबसे सुरक्षित स्थान होता है।
अपना रख पराया चख
– अपनी वस्तु बचाकर रखना और दूसरों की वस्तुएँ इस्तेमाल करना।
अपना लाल गँवाय के दर-दर माँगे भीख
– अपनी बहुमूल्य वस्तु को गवाँ देने से आदमी दूसरों का मोहताज हो जाता है।
अपना ही सोना खोटा तो सुनार का क्या दोष
– अपनी ही वस्तु खराब हो तो दूसरों को दोष देना उचित नहीं है।
अपनी- अपनी खाल में सब मस्त
– अपनी परिस्थिति से संतुष्ट रहना।
अपनी-अपनी ढफली, अपना-अपना राग
– सभी का अलग-अलग मत होना।
अपनी करनी पार उतरनी
– अच्छा परिणाम पाने के लिए स्वयं काम करना पड़ता है।
अपनी गरज से लोग गधे को भी बाप बनाते हैं
– येन-केन-प्रकारेण स्वार्थपूर्ति करना।
अपनी गरज बावली
– स्वार्थी आदमी दूसरों की परवाह नहीं करता।
अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है
– अपने घर में आदमी शक्तिशाली होता है।
अपनी गँठ पैसा तो पराया आसरा कैसा
– समर्थ व्यक्ति को दूसरे के आसरे की आवश्यकता नहीं होती।
अपनी चिलम भरने के लिए दूसरे का झोँपड़ा जलाना
– अपने छोटे से स्वार्थ के लिए दूसरे की भारी हानि कर देना।
अपनी छाछ को कोई खट्टा नहीं कहता
– अपनी चीज़ को कोई खराब नहीं बताता।
अपनी जाँघ उघारिए आपहि मरिए लाज
– अपने अवगुणों को दूसरों के समक्ष प्रस्तुत करके आप ही पछताना।
अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना
– मर्जी का मालिक होना।
अपनी नाक कटे तो कटे दूसरों का सगुन तो बिगड़े
– दूसरों का नुकसान करने के लिए अपने नुकसान की भी परवाह न करना।
अपनी पगड़ी अपने हाथ
– व्यक्ति अपनी इज्जत की रक्षा स्वयं ही कर सकता है।
अपने किए का क्या इलाज
– अपने द्वारा किए गए कर्म का फल भोगना ही पड़ता है।
अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता
– दूसरों के भरोसे काम नहीं होता, सफलता पाने के लिए स्वयं परिश्रम करना पड़ता है।
अपने पूत को कोई काना नहीं कहता
– अपनी चीज को कोई बुरा नहीं कहता।
अपने मुँह मिया मिट्ठू बनना
– अपनी बड़ाई आप करना।
अब की अब, तब की तब
– भविष्य की चिंता छोड़कर वर्तमान की ही चिंता करनी चाहिए।
अब सतवंती होकर बैठी लूट लिया सारा संसार
– उम्र भर बुरे कर्म करने के बाद अच्छा होने का दिखावा करना।
अभी तो तुम्हारे दूध के दाँत भी नहीं टूटे
– अभी तुम नादान हो।
अभी दिल्ली दूर है
– सफलता अभी दूर है।
अरहर की टट्टी गुजराती ताला
– मामूली वस्तु की रक्षा के लिए खर्च की परवाह न करना।
अजब तेरी माया, कहीं धूप कहीं छाया
– जीवन में सुख और दुःख आते ही रहते हैं।
अशर्फियाँ लुटाकर कोयलों पर मोहर लगाना
– अच्छे-बुरे का ज्ञान न होना।
आँख एक नहीं कजरौटा दस-दस
– व्यर्थ का आडम्बर करना।
आँख ओट पहाड़ ओट
– अनुपलब्ध व्यक्ति से किसी प्रकार का सहारा करना व्यर्थ है।
आँख और कान में चार अंगुल का फर्क
– सुनी हुई बात की अपेक्षा देखा हुआ सत्य अधिक विश्वसनीय होता है।
आँख का अंधा नाम नैनसुख
– व्यक्ति के नाम की अपेक्षा गुण प्रभावशाली होता है।
आ बैल मुझे मार
– जान बूझकर मुसीबत मोल लेना।
आई तो ईद, न आई तो जुम्मेरात
– आमदनी हुई तो मौज मनाना नहीं तो फाका करना।
आई मौज फकीर की, दिया झोँपड़ा फूँक
– विरक्त व्यक्ति को किसी चीज की परवाह नहीं होती।
आई है जान के साथ जाएगी जनाज़े के साथ
– लाईलाज बीमारी।
आग कह देने से मुँह नहीं जल जाता
– कोसने से किसी का अहित नहीं हो जाता।
आग का जला आग ही से अच्छा होता है
– कष्ट देने वाली वस्तु कष्ट का निवारण भी कर देती है।
आग खाएगा तो अंगार उगलेगा
– बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है।
आग बिना धुआँ नहीं
– बिना कारण कुछ भी नहीं होता।
आगे जाए घुटना टूटे, पीछे देखे आँख फूटे
– दुर्दिन झेलना।
आगे नाथ न पीछे पगहा
– पूर्णत: स्वतन्त्र रहना।
आज का बनिया कल का सेठ
– परिश्रम करते रहने से आदमी आगे बढ़ता जाता है।
आटे का चिराग, घर रखूँ तो चूहा खाए, बाहर रखूँ तो कौआ ले जाए
– ऐसी वस्तु जिसे बचाना मुश्किल हो।
आदमी-आदमी में अंतर कोई हीरा कोई कंकर
– व्यक्तियों के स्वभाव तथा गुण भिन्न-भिन्न होते हैं।
आदमी की दवा आदमी है
– मनुष्य ही मनुष्य की सहायता करते हैं।
आदमी को ढाई गज कफन काफी है
– अपनी हालत पर संतुष्ट रहना।
आदमी जाने बसे सोना जाने कसे
– आदमी की पहचान नजदीकी से और सोने की पहचान सोना कसौटी से होती है।
आम के आम गुठलियों के दाम
– दोहरा लाभ होना।
आधा तीतर आधा बटेर
– बेमेल वस्तु।
आधी छोड़ पूरी को धावै, आधी मिले न पूरी पावै
– लालच करने से हानि होती है।
आप काज़ महा काज़
– अपने उद्देश्य की पूर्ति करना चाहिए।
आप भला तो जग भला
– भले आदमी को सब लोग भले ही प्रतीत होते हैं।
आप मरे जग परलय
– मृत्यु के पश्चात कोई नहीं जानता कि संसार में क्या हो रहा है।
आप मियाँ जी मँगते द्वार खड़े दरवेश
– असमर्थ व्यक्ति दूसरों की सहायता नहीं कर सकता।
आपा तजे तो हरि को भजे
– परमार्थ करने के लिए स्वार्थ को त्यागना पड़ता है।
आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या मतलब
– निरुद्देश्य कार्य न करना।
आए की खुशी न गए का गम
– अपनी हालात में संतुष्ट रहना।
आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास
– लक्ष्य को भूलकर अन्य कार्य करना।
आसमान का थूका मुँह पर आता है
– बड़े लोगों की निंदा करने से अपनी ही बदनामी होती है।
आसमान से गिरा खजूर पर अटका
– सफलता पाने में अनेक बाधाओं का आना।
इक नागिन अरु पंख लगाई
– एक के साथ दूसरे दोष का होना।
इतना खाए जितना पावे
– अपनी औकात को ध्यान में रखकर खर्च करना।
इतनी सी जान, गज भर की ज़बान
– अपनी उम्र के हिसाब से अधिक बोलना।
इधर कुआँ उधर खाई
– हर हाल में मुसीबत।
इधर न उधर, यह बला किधर
– अचानक विपत्ति आ पड़ना।
इन तिलों में तेल नहीं
– किसी प्रकार का आसरा न होना।
इसके पेट में दाढ़ी है
– कम उम्र में बुद्धि का अधिक विकास होना।
इस हाथ दे उस हाथ ले
– किसी कार्य का फल तत्काल चाहना।
उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे
– दोषी होने पर भी दूसरों पर धौंस जमाना।
उगले तो अंधा, खाए तो कोढ़ी
– दुविधा में पड़ना।
उत्तर जाए या दक्खिन, वही करम के लक्ख़न
– स्थान बदल जाने पर भी व्यक्ति के लक्षण नहीं बदलते।
उल्टी गंगा पहाड़ चली
– असंभव कार्य।
उल्टे बाँस बरेली को
– विपरीत कार्य करना।
ऊँची दुकान फीका पकवान
– तड़क-भड़क करके स्तरहीन चीजों को खपाना।
ऊँट किस करवट बैठता है
– सन्देह की स्थिति में होना।
ऊँट के मुँ‍ह में जीरा
– अत्यन्त अपर्याप्त।
ऊधो का लेना न माधो का देना
– किसी के तीन-पाँच में न रहना, स्वयं में लिप्त होना।
एक अंडा वह भी गंदा
– बेकार की वस्तु।
एक अनार सौ बीमार
– किसी वस्तु की मात्रा बहुत कम किन्तु उसकी माँग बहुत अधिक होना।
एक आवे के बर्तन
– सभी का एक जैसा होना।
एक और एक ग्यारह होते हैं
– एकता में बल है।
एक तो करेला ऊपर से नीम चढ़ा
– बहुत अधिक खराब होना।
एक गंदी मछली सारे तलाब को गंदा कर देती है
– अनेक अच्छाईयोँ पर भी एक बुराई भारी पड़ती है।
एक टकसाल के ढले
– सभी का एक जैसा होना।
एक तवे की रोटी, क्या छोटी क्या मोटी
– किसी प्रकार का भेदभाव न रखना।
एक तो चोरी ऊपर से सीना-जोरी
– स्वयं के दोषी होने पर भी रोब गाँठना।
एक ही थैली के चट्टे-बट्टे
– एक जैसे दुर्गुण वाले।
एक मुँह दो बात
– अपनी बात से पलटना।
एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती
– समान अधिकार वाले दो व्यक्ति एक क्षेत्र में नहीं रह सकते।
एक हाथ से ताली नहीं बजती
– झगड़े के लिए दोनों पक्ष जिम्मेदार होते हैं।
एक ही लकड़ी से सबको हाँकना
– छोटे-बड़े का ध्यान न रखना।
एकै साधे सब सधे, सब साधे सब जाय
– एक साथ अनेक कार्य करने से कोई भी कार्य पूरा नहीं होता।
ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना
– कठिनाइयों न डरना।
ओस चाटे प्यास नहीं बुझती
– आवश्यक से अत्यन्त कम की प्राप्ति होना।
कंगाली में आटा गीला
– मुसीबत पर मुसीबत आना।
ककड़ी के चोर को फाँसी नहीं दी जाती
– अपराध के अनुसार ही दण्ड दिया जाना चाहिए।
कचहरी का दरवाजा खुला है
– न्याय पर सभी का अधिकार होता है।
कड़ाही से गिरा चूल्हे में पड़ा
– छोटी विपत्ति से छूटकर बड़ी विपत्ति में पड़ जाना।
कब्र में पाँव लटकना
– अत्यधिक उम्र वाला।
कभी के दिन बड़े कभी की रात
– सब दिन एक समान नहीं होते।
कभी नाव गाड़ी पर, कभी गाड़ी नाव पर
– परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
कमली ओढ़ने से फकीर नहीं होता
– ऊपरी वेशभूषा से किसी के अवगुण नहीं छिप जाते।
कमान से निकला तीर और मुँह से निकली बात वापस नहीं आती
– सोच-समझकर ही बात करनी चाहिए।
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
– अभ्यास करते रहने से सफलता अवश्य ही प्राप्त होती है।
करम के बलिया, पकाई खीर हो गया दलिया
– काम बिगड़ना।
करमहीन खेती करे, बैल मरे या सूखा पड़े
– दुर्भाग्य हो तो कोई न कोई काम खराब होता रहता है।
कर लिया सो काम, भज लिया सो राम
– अधूरे काम का कुछ भी मतलब नहीं होता।
कर सेवा तो खा मेवा
– अच्छे कार्य का परिणाम अच्छा ही होता है।
करे कोई भरे कोई
– किसी की करनी का फल किसी अन्य द्वारा भोगना।
करे दाढ़ी वाला, पकड़ा जाए जाए मुँछों वाला
– प्रभावशाली व्यक्ति के अपराध के लिए किसी छोटे आदमी को दोषी ठहराया जाना।
कल किसने देखा है
– आज का काम आज ही करना चाहिए।
कलार की दुकान पर पानी पियो तो भी शराब का शक होता है
– बुरी संगत होने पर कलंक लगता ही है।
कहाँ राम–राम, कहाँ टाँय–टाँय
– असमान चीजों की तुलना नहीं हो सकती।
कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानमती ने कुनबा जोड़ा
– असम्बन्धित वस्तुओं का एक स्थान पर संग्रह।
कहे खेत की, सुने खलिहान की
– कुछ कहने पर कुछ समझना।
का वर्षा जब कृषी सुखाने
– अवसर निकलने जाने पर सहायता भी व्यर्थ होती है।
कागज़ की नाव नहीं चलती
– बेईमानी या धोखेबाज़ी ज्यादा दिन नहीं चल सकती।
काजल की कौठरी में कैसेहु सयानो जाय एक लीक काजल की लगिहै सो लागिहै
– बुरी संगत होने पर कलंक अवश्य ही लगता है।
काज़ी जी दुबले क्यों? शहर के अंदेशे से
– दूसरों की चिन्ता में घुलना।
काठ की हाँडी एक बार ही चढ़ती है
– धोखा केवल एक बार ही दिया जा सकता है, बार बार नहीं।
कान में तेल डाल कर बैठना
– आवश्यक चिन्ताओं से भी दूर रहना।
काबुल में क्या गधे नहीं होते
– अच्छाई के साथ–साथ बुराई भी रहती है।
काम का न काज का, दुश्मन अनाज का
– खाना खाने के अलावा और कोई भी काम न करने वाला व्यक्ति।
काम को काम सिखाता है
– अभ्यास करते रहने से आदमी होशियार हो जाता है।
काल के हाथ कमान, बूढ़ा बचे न जवान
– मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, वह सभी को ग्रसती है।
काल न छोड़े राजा, न छोड़े रंक
– मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, वह सभी को ग्रसती है।
काला अक्षर भैंस बराबर
– अनपढ़ होना।
काली के ब्याह मेँ सौ जोखिम
– एक दोष होने पर लोगोँ द्वारा अनेक दोष निकाल दिए जाते हैं।
किया चाहे चाकरी राखा चाहे मान
– नौकरी करके स्वाभिमान की रक्षा नहीं हो सकती।
किस खेत की मूली है
– महत्व न देना।
किसी का घर जले कोई तापे
– किसी की हानि पर किसी अन्य का लाभान्वित होना।
कुंजड़ा अपने बेरों को खट्टा नहीं बताता
– अपनी चीज को कोई खराब नहीं कहता।
कुँए की मिट्टी कुँए में ही लगती है
– कुछ भी बचत न होना।
कुतिया चोरों से मिल जाए तो पहरा कौन देय
– भरोसेमन्द व्यक्ति का बेईमान हो जाना।
कुत्ता भी दुम हिलाकर बैठता है
– कुत्ता भी बैठने के पहले बैठने के स्थान को साफ करता है।
कुत्ते की दुम बारह बरस नली में रखो तो भी टेढ़ी की टेढ़ी
– लाख कोशिश करने पर भी दुष्ट अपनी दुष्टता नहीं त्यागता।
कुत्ते को घी नहीं पचता
– नीच आदमी ऊँचा पद पाकर इतराने लगता है।
कुत्ता भूँके हजार, हाथी चले बजार
– समर्थ व्यक्ति को किसी का डर नहीं होता।
कुम्हार अपना ही घड़ा सराहता है
– अपनी ही वस्तु की प्रशंसा करना।
कै हंसा मोती चुगे कै भूखा मर जाय
– सम्मानित व्युक्ति अपनी मर्यादा में रहता है।
कोई माल मस्त, कोई हाल मस्त
– कोई अमीरी से संतुष्ट तो कोई गरीबी से।
कोठी वाला रोवें, छप्पर वाला सोवे
– धनवान की अपेक्षा गरीब अधिक निश्चिंत रहता है।
कोयल होय न उजली सौ मन साबुन लाइ
– स्वभाव नहीं बदलता।
कोयले की दलाली में मुँह काला
– बुरी संगत से कलंक लगता ही है।
कौड़ी नहीं गाँठ चले बाग की सैर
– अपनी सामर्थ्य से अधिक की सोचना।
कौन कहे राजाजी नंगे हैं
– बड़े लोगों की बुराई नहीं देखी जाती।
कौआ चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल
– दूसरों की नकल करने से अपनी मौलिकता भी खो जाती है।
क्या पिद्दी और क्या पिद्दी का शोरबा
– अत्यन्त तुच्छ होना।
खग जाने खग ही की भाषा
– एक जैसे प्रकृति के लोग आपस में मिल ही जाते हैं।
ख्याली पुलाव से पेट नहीं भरता
– केवल सोचते रहने से काम पूरा नहीं हो जाता।
खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है
– देखादेखी काम करना।
खाक डाले चाँद नहीं छिपता
– किसी की निंदा करने से उसका कुछ नहीं बिगड़ता।
खाल ओढ़ाए सिंह की, स्यार सिंह नहीं होय
– ऊपरी रूप बदलने से गुण अवगुण नहीं बदलता।
खाली बनिया क्या करे, इस कोठी का धान उस कोठी में धरे
– बेकाम आदमी उल्टे-सीधे काम करता रहता है।
खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
– अपनी असफलता पर खीझना।
खुदा की लाठी में आवाज़ नहीं होती
– कोई नहीं जानता की अपने कर्मों का कब और कैसा फल मिलेगा।
खुदा गंजे को नाखून नहीं देता
– ईश्वर सभी की भलाई का ध्यान रखता है।
खुदा देता है तो छप्पर फाड़ कर देता है
– भाग्यशाली होना।
खुशामद से ही आमद है
– खुशामद से कार्य सम्पन्न हो जाते हैं।
खूँटे के बल बछड़ा कूदे
– दूसरे की शह पाकर ही अकड़ दिखाना।
खेत खाए गदहा, मार खाए जुलाहा
– किसी के दोष की सजा किसी अन्य को मिलना।
खेती अपन सेती
– दूसरों के भरोसे खेती नहीं की जा सकती।
खेल-खिलाड़ी का, पैसा मदारी का
– मेहनत किसी की लाभ किसी और का।
खोदा पहाड़ निकली चुहिया
– परिश्रम का कुछ भी फल न मिलना।
गंगा गए तो गंगादास, यमुना गए यमुनादास
– एक मत पर स्थिर न रहना।
गंजेडी यार किसके दम लगाया खिसके
– स्वार्थी आदमी स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।
गधा धोने से बछड़ा नहीं हो जाता
– स्वभाव नहीं बदलता।
गधा भी कहीं घोड़ा बन सकता है
– बुरा आदमी कभी भला नहीं बन सकता।
गई माँगने पूत, खो आई भरतार
– थोड़े लाभ के चक्कर में भारी नुकसान कर लेना।
गर्व का सिर नीचा
– घमंडी आदमी का घमंड चूर हो ही जाता है।
गरीब की लुगाई सब की भौजाई
– गरीब आदमी से सब लाभ उठाना चाहते हैं।
गरीबी तेरे तीन नाम- झूठा, पाजी, बेईमान
– गरीब का सवर्त्र अपमान होता रहता है।
गरीबों ने रोज़े रखे तो दिन ही बड़े हो गए
– गरीब की किस्मत ही बुरी होती है।
गवाह चुस्त, मुद्दई सुस्त
– जिसका काम है वह तो आलस से करे, दूसरे फुर्ती दिखाएं।
गाँठ का पूरा, आँख का अंधा
– मालदार असामी।
गीदड़ की मौत आती है तो वह गाँव की ओर भागता है
– विपत्ति में बुद्धि काम नहीं करती।
गुड़ खाए, गुलगुलों से परहेज
– झूठ और ढोंग रचना।
गुड़ दिए मरे तो जहर क्यों दें
– काम प्रेम से निकल सके तो सख्ती न करें।
गुड़ न दें, पर गुड़ सी बात तो करें
– कुछ न दें पर मीठे बोल तो बोलें।
गुरु-गुड़ ही रहे, चेले शक्कर हो गए
– छोटों का बड़ों से आगे बढ़ जाना।
गूदड़ में लाल नहीं छिपता
– गुण स्वयं ही झलकता है।
गेहूँ के साथ घुन भी पिसता है
– दोषी के साथ निर्दोष भी मारा जाता है।
गोद में बैठकर आँख में उँगली करना/गोदी में बैठकर दाढ़ी नोचना
– भलाई के बदले बुराई करना।
गोद में छोरा, शहर में ढिंढोरा
– पास की वस्तु नजर न आना।
घड़ी भर में घर जले, अढ़ाई घड़ी भद्रा
– समय पहचान कर ही कार्य करना चाहिए।
घड़ी में तोला, घड़ी में माशा
– चंचल विचारों वाला।
घर आए कुत्ते को भी नहीं निकालते
– घर में आने वाले को मान देना चाहिए।
घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध
– अपने ही घर में अपनी कीमत नहीं होती।
घर का भेदी लंका ढाए
– आपसी फूट का परिणाम बुरा होता है।
घर की मुर्गी दाल बराबर
– अपनी चीज़ या अपने आदमी की कदर नहीं।
घर खीर तो बाहर खीर
– समृद्धि सम्मान प्रदान करती है।
घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने
– कुछ न होने पर भी होने का दिखावा करना।
घायल की गति घायल जाने
– कष्ट भोगने वाला ही वही दूसरों के कष्ट को समझ सकता है।
घी गिरा खिचड़ी में
– लापरवाही के बावजूद भी वस्तु का सदुपयोग होना।
घी सँवारे काम बड़ी बहू का नाम
– साधन पर्याप्त हों तो काम करने वाले को यश भी मिलता है।
घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खाएगा क्या?
– व्यापार में रियायत नहीं की जाती।
घोड़े की दुम बढ़ेगी तो अपने ही मक्खियाँ उड़ाएगा
– उन्नति करके आदमी अपना ही भला करता है।
घोड़े को लात, आदमी को बात
– सामने वाले का स्वभाव पहचान कर उचित व्यहार करना।
चक्की में कौर डालोगे तो चून पाओगे
– कुछ पाने के लिए कुछ लगाना ही पड़ता है।
चट मँगनी पट ब्याह
– त्वरित गति से कार्य होना।
चढ़ जा बेटा सूली पर, भगवान भला करेंगे
– बिना सोचे विचारे खतरा मोल लेना।
चने के साथ कहीं घुन न पिस जाए
– दोषी के साथ कहीं निर्दोष न मारा जाए।
चमगादड़ों के घर मेहमान आए, हम भी लटके तुम भी लटको
– गरीब आदमी क्या आवभगत करेगा।
चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए
– महा कंजूस।
चमार चमड़े का यार
– स्वार्थी व्यक्ति।
चरसी यार किसके दम लगाया खिसके
– स्वार्थी व्यक्ति स्वार्थ सिद्ध होते ही मुँह फेर लेता है।
चलती का नाम गाड़ी
– कार्य चलते रहना चाहिए।
चाँद को भी ग्रहण लगता है
– भले आदमी की भी बदनामी हो जाती है।
चाकरी में न करी क्या?
– नौकरी में मालिक की आज्ञा अवहेलना नहीं की जा सकती।
चार दिन की चाँदनी फिर अँधियारी रात
– सुख थोड़े ही दिन का होता है।
चिकना मुँह पेट खाली
– देखने में अच्छा-भला भीतर से दु:खी।
चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता
– निर्लज्ज़ आदमी पर किसी बात का असर नहीं पड़ता।
चिकने मुँह को सब चूमते हैं
– समृद्ध व्यक्ति के सभी यार होते हैं।
चिड़िया की जान गई, खाने वाले को मजा न आया
– भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।
चित भी मेरी पट भी मेरी अंटी मेरे बाबा का
– हर हालत में अपना ही लाभ देखना।
चिराग तले अँधेरा
– पास की चीज़ दिखाई न पड़ना।
चिराग में बत्ती और आँख में पट्टी
– शाम होते ही सोने लगना।
चींटी की मौत आती है तो उसके पर निकलने लगते हैं
– घमंड करने से नाश होता है।
चील के घोँसले में मांस कहाँ
– दरिद्र व्यक्ति क्या बचत कर सकता है?
चुड़ैल पर दिल आ जाए तो वह भी परी है
– पसंद आ जाए तो बुरी वस्तु भी अच्छी ही लगती है।
चुल्लू भर पानी में डूब मरना
– शर्म से डूब जाना।
चुल्लू-चुल्लू साधेगा, दुआरे हाथी बाँधेगा
– थोड़ा-थोड़ा जमा करके अमीर बना जा सकता है।
चूल्हे की न चक्की की
– किसी काम न होना।
चूहे का बच्चा बिल ही खोदता है
– स्वभाव नहीं बदलता।
चूहे के चाम से कहीं नगाड़े मढ़े जाते हैं
– अपर्याप्त।
चूहों की मौत बिल्ली का खेल
– दूसरे को कष्ट देकर मजा लेना।
चोट्टी कुतिया जलेबियों की रखवाली
– चोर को रक्षा करने के कार्य पर लगाना।
चोर के पैर नहीं होते
– दोषी व्यक्ति स्वयं फँसता है।
चोर-चोर मौसेरे भाई
– एक जैसे बदमाशों का मेल हो ही जाता है।
चोर-चोरी से जाए, हेरा-फेरी से न जाए
– दुष्ट आदमी से पूरी तरह से दुष्टता नहीं छूटती।
चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले
– शक्तिशाली आदमी से दो व्यक्ति भी हार जाते हैं।
चोर को कहे चोरी कर और साह से कहे जागते रहो
– दो पक्षों को लड़ाने वाला।
चोरी और सीना जोरी
– गलत काम करके भी अकड़ दिखाना।
चोरी का धन मोरी में
– हराम की कमाई बेकार जाती है।
चौबे गए छब्बे बनने, दूबे ही रह गए
– अधिक लालच करके अपना सब कुछ गवाँ देना।
छछूँदर के सिर में चमेली का तेल
– अयोग्य के पास अच्छी चीज होना।
छलनी कहे सूई से तेरे पेट में छेद
– अपने अवगुणों को न देखकर दूसरों की आलोचना करना।
छाज (सूप) बोले तो बोले, छलनी भी बोले जिसमें हजार छेद
– ज्ञानी के समक्ष अज्ञानी का बोलना।
छीके कोई, नाक कटावे कोई
– किसी के दोष का फल किसी दूसरे के द्वारा भोगना।
छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर
– हर तरफ से हानि ही हानि होना।
छोटा मुँह बड़ी बात
– अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना।
छोटे मियाँ तो छोटे मियाँ, बड़े मियाँ सुभान अल्लाह
– छोटे के अवगुणों से बड़े के अवगुण अधिक होना।
जंगल में मोर नाचा किसने देखा
– कद्र न करने वालों के समक्ष योग्यता प्रदर्शन।
जड़ काटते जाएं, पानी देते जाएं
– भीतर से शत्रु ऊपर से मित्र।
जने-जने की लकड़ी, एक जने का बोझ
– अकेला व्यक्ति काम पूरा नहीं कर सकता किन्तु सब मिल काम करें तो काम पूरा हो जाता है।
जब चने थे दाँत न थे, जब दाँत भये तब चने नहीं
– कभी वस्तु है तो उसका भोग करने वाला नहीं और कभी भोग करने वाला है तो वस्तु नहीं।
जब तक जीना तब तक सीना
– आदमी को मृत्युपर्यन्त काम करना ही पड़ता है।
जब तक साँस तब तक आस
– अंत समय तक आशा बनी रहती है।
जबरदस्ती का ठेंगा सिर पर
– जबरदस्त आदमी दबाव डाल कर काम लेता है।
जबरा मारे रोने न दे
– जबरदस्त आदमी का अत्याचार चुपचाप सहन करना पड़ता है।
जबान को लगाम चाहिए
– सोच-समझकर बोलना चाहिए।
ज़बान ही हाथी चढ़ाए, ज़बान ही सिर कटाए
– मीठी बोली से आदर और कड़वी बोली से निरादर होता है।
जर का जोर पूरा है, और सब अधूरा है
– धन में सबसे अधिक शक्ति है।
जर है तो नर नहीं तो खंडहर
– पैसे से ही आदमी का सम्मान है।
जल में रहकर मगर से बैर
– जहाँ रहना हो वहाँ के शक्तिशाली व्यक्ति से बैर ठीक नहीं होता।
जस दूल्हा तस बाराती
– स्वभाव के अनुसार ही मित्रता होती है।
जहँ जहँ पैर पड़े संतन के, तहँ तहँ बंटाधार
– अभागा व्यक्ति जहाँ भी जाता है बुरा होता है।
जहाँ गुड़ होगा, वहीं मक्खियाँ होंगी
– धन प्राप्त होने पर खुशामदी अपने आप मिल जाते हैं।
जहाँ चार बर्तन होंगे, वहाँ खटकेंगे भी
– सभी का मत एक जैसा नहीं हो सकता।
जहाँ चाह है वहाँ राह है
– काम के प्रति लगन हो तो काम करने का रास्ता निकल ही आता है।
जहाँ देखे तवा परात, वहाँ गुजारे सारी रात
– जहाँ कुछ प्राप्ति की आशा दिखे वहीं जम जाना।
जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि
– कवि की कल्पना की पहुँच सर्वत्र होती है।
जहाँ फूल वहाँ काँटा
– अच्छाई के साथ बुराई भी होती ही है।
जहाँ मुर्गा नहीं होता, क्या वहाँ सवेरा नहीं होता
– किसी के बिना किसी का काम रूकता नहीं है।
जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई
– दु:ख को भुक्तभोगी ही जानता है।
जागेगा सो पावेगा, सोवेगा सो खोएगा
– हमेशा सतर्क रहना चाहिए।
जादू वह जो सिर पर चढ़कर बोले
– अत्यन्त प्रभावशाली होना।
जान मारे बनिया पहचान मारे चोर
– बनिया और चोर जान पहचान वालों को ठगते हैं।
जाए लाख, रहे साख
– धन भले ही चला जाए, इज्जत बचनी चाहिए।
जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा
– जितना अधिक लगाओगे उतना ही अच्छा पाओगे।
जितनी चादर हो, उतने ही पैर पसारो
– आमदनी के हिसाब से खर्च करो।
जितने मुँह उतनी बातें
– अस्पष्ट होना।
जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैंठ
– परिश्रम करने वाले को ही लाभ होता है।
जिस थाली में खाना, उसी में छेद करना
– जो उपकार करे, उसका ही अहित करना।
जिसका काम उसी को साजै
– जो काम जिसका है वहीं उसे ठीक तरह से कर सकता है।
जिसका खाइए उसका गाइए
– जिससे लाभ हो उसी का पक्ष लो।
जिसका जूता उसी का सिर
– दुश्मन को दुश्मन के ही हथियार से मारना।
जिसकी लाठी उसकी भैंस
– शक्तिशाली ही समर्थ होता है।
जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई
– धनी आदमी के सभी मित्र होते हैं।
जिसको पिया चाहे, वहीं सुहागिन
– समर्थ व्यक्ति जिसका चाहे कल्याण कर सकता है।
जर जाए, घी न जाए
– महाकृपण।
जीती मक्खी नहीं निगली जाती
– जानते बूझते गलत काम नहीं किया जा सकता।
जीभ भी जली और स्वाद भी न आया
– कष्ट सहकर भी उद्देश्य पूर्ति न होना।
जूठा खाए मीठे के लालच
– लाभ के लालच में नीच काम करना।
जैसा करोगे वैसा भरोगे
– जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
जैसा बोवोगे वैसा काटोगे
– जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
जैसा मुँह वैसा थप्पड़
– जो जिसके योग्य हो उसको वही मिलता है।
जैसा राजा वैसी प्रजा
– राजा नेक तो प्रजा भी नेक, राजा बद तो प्रजा भी बद।
जैसी करनी वैसी भरनी
– जैसा काम करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
जैसे तेरी बाँसुरी, वैसे मेरे गीत
– गुण के अनुसार ही प्राप्ति होती है।
जैसे कंता घर रहे वैसे रहे परदेश
– निकम्मा आदमी घर में रहे या बाहर कोई अंतर नहीं।
जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ
– दुष्ट लोग एक जैसे ही होते हैं।।
जो गरजते हैं वो बरसते नहीं
– डींग हाँकने वाले काम के नहीं होते हैं।
जोगी का बेटा खेलेगा तो साँप से
– बाप का प्रभाव बेटे पर पड़ता है।
जो गुड़ खाए सो कान छिदाए
– लाभ पाने वाले को कष्ट सहना ही पड़ता है।
जो तोको काँटा बुवे ताहि बोइ तू फूल
– बुराई का बदला भी भलाई से दो।
जो बोले सों घी को जाए
– बड़बोलेपन से हानी ही होती है।
जो हाँडी में होगा वह थाली में आएगा
– जो मन मेँ है वह प्रकट होगा ही।
ज्यों-ज्यों भीजे कामरी त्यों-त्यों भारी होय
(1) पद के अनुसार जिम्मेदारियाँ भी बढ़ती जाती हैं।
(2) उधारी को छूटते ही रहना चाहिए अन्यथा ब्याज बढ़ते ही जाता है।
झूठ के पाँव नहीं होते
– झूठा आदमी अपनी बात पर खरा नहीं उतरता।
झोपड़ी में रहें, महलों के ख्वाब देखें
– अपनी सामर्थ्य से बढ़कर चाहना।
टके का सब खेल है
– धन सब कुछ करता है।
ठंडा करके खाओ
– धीरज से काम करो।
ठंडा लोहा गरम लोहे को काट देता है
– शान्त व्याक्ति क्रोधी को झुका देता है।
ठोक बजा ले चीज, ठोक बजा दे दाम
– अच्छी वस्तु का अच्छा दाम।
ठोकर लगे तब आँख खुले
– अक्ल अनुभव से आती है।
डण्डा सब का पीर
– सख्ती करने से लोग काबू में आते हैं।
डायन को दामाद प्यारा
– खराब लोगों को भी अपने प्यारे होते हैं।
डूबते को तिनके का सहारा
– विपत्ति में थोड़ी सी सहायता भी काफी होती है।
ढाक के तीन पात
– अपनी बात पर अड़े रहना।
ढोल के भीतर पोल
– झूठा दिखावा करने वाला।
तख्त या तख्ता
– या तो उद्देश्य की प्राप्ति हो या स्वयं मिट जाएँ।
तबेले की बला बंदर के सिर
– अपना अपराध दूसरे के सिर मढ़ना।
तन को कपड़ा न पेट को रोटी
– अत्यन्त दरिद्र।
तलवार का खेत हरा नहीं होता
– अत्याचार का फल अच्छा नहीं होता।
ताली दोनों हाथों से बजती है
– केवल एक पक्ष होने से लड़ाई नहीं हो सकती।
तिरिया बिन तो नर है ऐसा, राह बटाऊ होवे जैसा
– स्त्री के बिना पुरूष अधूरा होता है।
तीन बुलाए तेरह आए, दे दाल में पानी
– समय आ पड़े तो साधन निकाल लेना पड़ता है।
तीन में न तेरह में
– निष्पक्ष होना।
तेरी करनी तेरे आगे, मेरी करनी मेरे आगे
– सबको अपने-अपने कर्म का फल भुगतना ही पड़ता है।
तुम्हारे मुँह में घी शक्कर
– शुभ सन्देश।
तुरत दान महाकल्याण
– काम को तत्काल निबटाना।
तू डाल-डाल मैं पात-पात
– चालाक के साथ चालाकी चलना।
तेल तिलों से ही निकलता है
– सामर्थ्यवान व्यक्ति से ही प्राप्ति होती है।
तेल देखो तेल की धार देखो
– धैर्य से काम लेना।
तेल न मिठाई, चूल्हे धरी कड़ाही
– दिखावा करना।
तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे
– दान कोई करे कुढ़न दूसरे को हो।
तेली के बैल को घर ही पचास कोस
– घर में रहने पर भी अक्ल का अंधा कष्ट ही भोगता है।
तेली खसम किया, फिर भी रूखा खाया
– सामर्थ्यतवान की शरण में रहकर भी दु:ख उठाना।
थका ऊँट सराय ताकता
– परिश्रम के पश्चात् विश्राम आवश्यक होता है।
थूक से सत्तू नहीं सनते
– कम सामग्री से काम पूरा नहीं हो पाता।
थोथा चना बाजे घना
– मूर्ख अपनी बातों से अपनी मूर्खता को प्रकट कर ही देता है।
दमड़ी की बुढिया ढाई टका सिर मुँड़ाई
– मामूली वस्तु के रख रखाव के लिए अधिक खर्च करना।
दबाने पर चींटी भी चोट करती है
– दुःख पहुँचाने पर निर्बल भी वार करता है।
दमड़ी की हाँड़ी गई, कुत्ते की जात पहचानी गई
– असलियत जानने के लिए थोड़ी सी हानि सह लेना।
दर्जी की सुई, कभी धागे में कभी टाट में
– परिस्थिति के अनुसार कार्य।
दलाल का दिवाला क्या, मस्जिद में ताला क्या
– निर्धन को लुटने का डर नहीं होता।
दाग लगाए लँगोटिया यार
– अपनों से धोखा खाना।
दाता दे भंडारी का पेट फटे
– दान कोई करे कुढ़न दूसरे को हो।
दादा कहने से बनिया गुड़ देता है
– मीठे बोल बोलने से काम बन जाता है।
दान के बछिया के दाँत नहीं देखे जाते
– मुफ्त में मिली वस्तु के गुण-अवगुण नहीं परखे जाते।
दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम
– हक की वस्तु अवश्य ही मिलती है।
दाम सँवारे सारे काम
– पैसा सब काम करता है।
दाल में काला होना
– गड़बड़ होना।
दाल-भात में मसूरचंद
– जबरदस्ती दखल देने वाला।
दाल में नमक, सच में झूठ
– थोड़ा-सा झूठ बोलना गलत नहीं होता।
दिनन के फेर से सुमेरू होत माटी को
– बुरे समय में सोना भी मिट्टी हो जाता है।
दिल्ली अभी दूर है
– सफलता दूर है।
दीवार के भी कान होते हैं
– सतर्क रहना चाहिए।
दुधारू गाय की लात सहनी पड़ती है
– जिससे लाभ होता है, उसकी धौंस भी सहनी पड़ती है।
दुनिया का मुँह किसने रोका है
– बोलने वालों की परवाह नहीं करनी चाहिए।
दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम
– दुविधा में पड़ने से कुछ भी नहीं मिलता।
दूल्हा को पत्तल नहीं, बजनिये को थाल
– बेतरतीब काम करना।
दूध का दूध पानी का पानी
– उचित न्याय होना।
दूध पिलाकर साँप पोसना
– शत्रु का उपकार करना।
दूर के ढोल सुहावने
– देख परख कर ही सही गलत का ज्ञान करना।
दूसरे की पत्तल लंबा-लंबा भात
– दूसरे की वस्तु अच्छी लगती है।
देसी कुतिया विलायती बोली
– दिखावा करना।
देह धरे के दण्ड हैं
– शरीर है तो कष्ट भी होगा।
दोनों हाथों में लड्डू
– सभी प्रकार से लाभ ही लाभ।
दो लड़े तीसरा ले उड़े
– दो की लड़ाई में तीसरे का लाभ होना।
धनवंती को काँटा लगा दौड़े लोग हजार
– धनी आदमी को थोड़ा-सा भी कष्ट हो तो बहुत लोग उनकी सहायता को आ जाते हैं।
धन्ना सेठ के नाती बने हैं
– अपने को अमीर समझना।
धर्म छोड़ धन कौन खाए
– धर्म विरूद्ध कमाई सुख नहीं देती।
धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए हैं
– अनुभवी होना।
धोबी का गधा घर का ना घाट का
– कहीं भी इज्जत न पाना।
धोबी पर बस न चला तो गधे के कान उमेठे
– शक्तिशाली पर आने वाले क्रोध को निर्बल पर उतारना।
धोबी के घर पड़े चोर, लुटे कोई और
– धोबी के घर चोरी होने पर कपड़े दूसरों के ही लुटते हैं।
धोबी रोवे धुलाई को, मियाँ रोवे कपड़े को
– सब अपने ही नुकसान की बात करते हैं।
नंगा बड़ा परमेश्वर से
– निर्लज्ज से सब डरते हैं।
नंगा क्या नहाएगा क्या निचोड़ेगा
– अत्यन्त निर्धन होना।
नंगे से खुदा डरे
– निर्लज्ज से भगवान भी डरते हैं।
न अंधे को न्योता देते न दो जने आते
– गलत फैसला करके पछताना।
न इधर के रहे, न उधर के रहे
– दुविधा में रहने से हानि ही होती है।
नकटा बूचा सबसे ऊँचा
– निर्लज्ज से सब डरते हैं इसलिए वह सबसे ऊँचा होता है।
नक्कारखाने में तूती की आवाज
– महत्व न मिलना।
नदी किनारे रूखड़ा जब-तब होय विनाश
– नदी के किनारे के वृक्ष का कभी भी नाश हो सकता है।
न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी
– ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके/असम्भव शर्त लगाना।
नमाज़ छुड़ाने गए थे, रोज़े गले पड़े
– छोटी मुसीबत से छुटकारा पाने के बदले बड़ी मुसीबत में पड़ना।
नया नौ दिन पुराना सौ दिन
– साधारण ज्ञान होने से अनुभव होने का अधिक महत्व होता है।
न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी
– ऐसी परिस्थिति जिसमें काम न हो सके।
नाई की बरात में सब ही ठाकुर
– सभी का अगुवा बनना।
नाक कटी पर घी तो चाटा
– लाभ के लिए निर्लज्ज हो जाना।
नाच न जाने आँगन टेढ़ा
– बहाना करके अपना दोष छिपाना।
नानी के आगे ननिहाल की बातें
– बुद्धिमान को सीख देना।
नानी के टुकड़े खावे, दादी का पोता कहावे
– खाना किसी का, गाना किसी का।
नानी क्वाँरी मर गई, नाती के नौ-नौ ब्याह
– झूठी बड़ाई।
नाम बड़े दर्शन छोटे
– झूठा दिखावा।
नाम बढ़ावे दाम
– किसी चीज का नाम हो जाने से उसकी कीमत बढ़ जाती है।
नामी चोर मारा जाए, नामी शाह कमाए खाए
– बदनामी से बुरा और नेकनामी से भला होता है।
नीचे की साँस नीचे, ऊपर की साँस ऊपर
– अत्यधिक घबराहट की स्थिति।
नीचे से जड़ काटना, ऊपर से पानी देना
– ऊपर से मित्र, भीतर से शत्रु।
नीम हकीम खतरा-ए-जान
– अनुभवहीन व्याक्ति के हाथों काम बिगड़ सकता है।
नेकी और पूछ-पूछ
– भलाई का काम।
नौ दिन चले अढ़ाई कोस
– अत्यन्त मंद गति से कार्य करना।
नौ नकद, न तेरह उधार
– नकद का काम उधार के काम से अच्छा।
नौ सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली
– जीवन भर कुकर्म करके अन्त में भला बनना।
पंच कहे बिल्ली तो बिल्ली‍ ही सही
– सबकी राय में राय मिलाना।
पंचों का कहना सिर माथे पर, पर नाला वहीं रहेगा
– दूसरों की सुनकर भी अपने मन की करना।
पकाई खीर पर हो गया दलिया
– दुर्भाग्य।
पगड़ी रख, घी चख
– मान-सम्मान से ही जीवन का आनंद है।
पढ़े तो हैं पर गुने नहीं
– पढ़-लिखकर भी अनुभवहीन।
पढ़े फारसी बेचे तेल
– गुणवान होने पर भी दुर्भाग्यवश छोटा काम मिलना।
पत्थर को जोंक नहीं लगती
– निर्दयी आदमी दयावान नहीं बन सकता।
पत्थर मोम नहीं होता
– निर्दयी आदमी दयावान नहीं बन सकता।
पराया घर थूकने का भी डर
– दूसरे के घर में संकोच रहता है।
पराये धन पर लक्ष्मीनारायण
– दूसरे के धन पर गुलछर्रें उड़ाना।
पहले तोलो, फिर बोलो
– सोच-समझकर मुँह खोलना चाहिए।
पाँच पंच मिल कीजे काजा, हारे-जीते कुछ नहीं लाजा
– मिलकर काम करने पर हार-जीत की जिम्मेदारी एक पर नहीं आती।
पाँचों उँगलियाँ घी में
– चौतरफा लाभ।
पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होतीं
– सब आदमी एक जैसे नहीं होते।
पागलों के क्या सींग होते हैं
– पागल भी साधारण मनुष्य होता है।
पानी केरा बुलबुला अस मानुस के जात
– जीवन नश्वर है।
पानी पीकर जात पूछते हो
– काम करने के बाद उसके अच्छे-बुरे पहलुओं पर विचार करना।
पाप का घड़ा डूब कर रहता है
– पाप जब बढ़ जाता है तब विनाश होता है।
पिया गए परदेश, अब डर काहे का
– जब कोई निगरानी करने वाला न हो, तो मौज उड़ाना।
पीर बावर्ची भिस्ती खर
– किसी एक के द्वारा ही सभी तरह के काम करना।
पूत के पाँव पालने में पहचाने जाते हैं
– वर्तमान लक्षणों से भविष्य का अनुमान लग जाता है।
पूत सपूत तो का धन संचय, पूत कपूत तो का धन संचय
– सपूत स्वयं कमा लेगा, कपूत संचित धन को उड़ा देगा।
पूरब जाओ या पच्छिम, वही करम के लच्छन
– स्थान बदलने से भाग्य और स्व‍भाव नहीं बदलता।
पेड़ फल से जाना जाता है
– कर्म का महत्व उसके परिणाम से होता है।
प्यासा कुएँ के पास जाता है
– बिना परिश्रम सफलता नहीं मिलती।
फिसल पड़े तो हर गंगे
– बहाना करके अपना दोष छिपाना।
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद
– ज्ञान न होना।
बकरे की जान गई खाने वाले को मज़ा नहीँ आया
– भारी काम करने पर भी सराहना न मिलना।
बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है
– शक्तिशाली व्यक्ति निर्बल को दबा लेता है।
बड़े बरतन का खुरचन भी बहुत है
– जहाँ बहुत होता है वहाँ घटते-घटते भी काफी रह जाता है।
बड़े बोल का सिर नीचा
– घमंड करने वाले को नीचा देखना पड़ता है।
बनिक पुत्र जाने कहा गढ़ लेवे की बात
– छोटा आदमी बड़ा काम नहीं कर सकता।
बनी के सब यार हैं
– अच्छे दिनों में सभी दोस्त बनते हैं।
बरतन से बरतन खटकता ही है
– जहाँ चार लोग होते हैं वहाँ कभी अनबन हो सकती है।
बहती गंगा में हाथ धोना
– मौके का लाभ उठाना।
बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा
– पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है।
बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे
– रक्षक का भक्षक हो जाना।
बाप भला न भइया, सब से भला रूपइया
– धन ही सबसे बड़ा होता है।
बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़
– छोटे का बड़े से बढ़ जाना।
बाप से बैर, पूत से सगाई
– पिता से दुश्मनी और पुत्र से लगाव।
बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
– बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है।
बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
– एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं।
बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
– काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है।
बासी बचे न कुत्ता खाय
– जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना।
बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप
– जो वस्तु काम आ जाए वही अच्छी।
बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले
– मूर्खतापूर्ण कार्य करना।
बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती
– बिना यत्न किए कुछ भी नहीं मिलता।
बिल्ली और दूध की रखवाली?
– भक्षक रक्षक नहीं हो सकता।
बिल्ली के सपने में चूहा
– जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है।
बिल्ली गई चूहों की बन आयी
– डर खत्म होते ही मौज मनाना।
बीमार की रात पहाड़ बराबर
– खराब समय मुश्किल से कटता है।
बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम
– वय के हिसाब से ही काम करना चाहिए।
बुढ़ापे में मिट्टी खराब
– बुढ़ापे में इज्जत में बट्टा लगना।
बुढिया मरी तो आगरा तो देखा
– प्रत्येक घटना के दो पहलू होते हैं– अच्छा और बुरा।
बूँद-बूँद से घड़ा भरता है
– थोड़ा-थोड़ा जमा करने से धन का संचय होता है।
बूढे तोते भी कही पढ़ते हैं
– बुढ़ापे में कुछ सीखना मुश्किल होता है।
बिल्ली के भागों छींका टूटा
– सौभाग्य।
बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ से होय
– जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलेगा।
भरी गगरिया चुपके जाय
– ज्ञानी आदमी गंभीर होता है।
भरे पेट शक्कर खारी
– समय के अनुसार महत्व बदलता है।
भले का भला
– भलाई का बदला भलाई में मिलता है।
भलो भयो मेरी मटकी फूटी मैं दही बेचने से छूटी
– काम न करने का बहाना मिल जाना।
भलो भयो मेरी माला टूटी राम जपन की किल्लत छूटी
– काम न करने का बहाना मिल जाना।
भागते भूत की लँगोटी ही सही
– कुछ न मिलने से कुछ मिलना अच्छा है।
भीख माँगे और आँख दिखाए
– दयनीय होकर भी अकड़ दिखाना।
भूख लगी तो घर की सूझी
– जरूरत पड़ने पर अपनों की याद आती है।
भूखे भजन न होय गोपाला
– भूख लगी हो तो भोजन के अतिरिक्त कोई अन्य कार्य नहीं सूझता।
भूल गए राग रंग भूल गई छकड़ी, तीन चीज़ याद रहीं नून तेल लकड़ी
– गृहस्थीं के जंजाल में फँसना।
भैंस के आगे बीन बजे, भैंस खड़ी पगुराय
– मूर्ख के आगे ज्ञान की बात करना बेकार है।
भौंकते कुत्ते को रोटी का टुकड़ा
– जो तंग करे उसको कुछ दे-दिला के चुप करा दो।
मछली के बच्चे को तैरना कौन सिखाता है
– गुण जन्मजात आते हैं।
मजनू को लैला का कुत्ता भी प्यारा
– प्रेयसी की हर चीज प्रेमी को प्यारी लगती है।
मतलबी यार किसके, दम लगाया खिसके
– स्वार्थी व्यक्ति को अपना स्वार्थ साधने से काम रहता है।
मन के लड्ड़ओं से भूख नहीं मिटती
– इच्छा करने मात्र से ही इच्छापूर्ति नहीं होती।
मन चंगा तो कठौती में गंगा
– मन की शुद्धता ही वास्तविक शुद्धता है।
मरज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों इलाज करता गया
– सुधार के बजाय बिगाड़ होना।
मरता क्या न करता
– मजबूरी में आदमी सब कुछ करना पड़ता है।
मरी बछिया बांभन के सिर
– व्यर्थ दान।
मलयागिरि की भीलनी चंदन देत जलाय
– बहुत अधिक नजदीकी होने पर कद्र घट जाती है।
माँ का पेट कुम्हार का आवा
– संताने सभी एक-सी नहीं होती।
माँगे हरड़, दे बेहड़ा
– कुछ का कुछ करना।
मान न मान मैं तेरा मेहमान
– ज़बरदस्ती का मेहमान।
मानो तो देवता नहीं तो पत्थर
– माने तो आदर, नहीं तो उपेक्षा।
माया से माया मिले कर-कर लंबे हाथ
– धन ही धन को खींचता है।
माया बादल की छाया
– धन-दौलत का कोई भरोसा नहीं।
मार के आगे भूत भागे
– मार से सब डरते हैँ।
मियाँ की जूती मियाँ का सिर
– दुश्मन को दुश्मन के हथियार से मारना।
मिस्सों से पेट भरता है किस्सों से नहीं
– बातों से पेट नहीं भरता।
मीठा-मीठा गप, कड़वा-कड़वा थू-थू
– मतलबी होना।
मुँह में राम बगल में छुरी
– ऊपर से मित्र भीतर से शत्रु।
मुँह माँगी मौत नहीं मिलती
– अपनी इच्छा से कुछ नहीं होता।
मुफ्त की शराब काज़ी को भी हलाल
– मुफ्त का माल सभी ले लेते हैं।
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक
– सीमित दायरा।
मोरी की ईंट चौबारे पर
– छोटी चीज का बड़े काम में लाना।
म्याऊँ के ठोर को कौन पकड़े
– कठिन काम कोई नहीं करना चाहता।
यह मुँह और मसूर की दाल
– औकात का न होना।
रंग लाती है हिना पत्थर पे घिसने के बाद
– दु:ख झेलकर ही आदमी का अनुभव और सम्मान बढ़ता है।
रस्सी जल गई पर ऐंठ न गई
– घमण्ड का खत्म न होना।
राजा के घर मोतियों का अकाल?
– समर्थ को अभाव नहीं होता।
रानी रूठेगी तो अपना सुहाग लेगी
– रूठने से अपना ही नुकसान होता है।
राम की माया कहीं धूप कहीं छाया
– कहीं सुख है तो कहीं दुःख है।
राम मिलाई जोड़ी, एक अंधा एक कोढ़ी
– बराबर का मेल हो जाना।
राम राम जपना पराया माल अपना
– ऊपर से भक्त, असल में ठग।
रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना
– रोज कमाना रोज खाना।
रोगी से बैद
– भुक्तभोगी अनुभवी हो जाता है।
लड़े सिपाही नाम सरदार का
– काम का श्रेय अगुवा को ही मिलता है।
लड्डू कहे मुँह मीठा नहीं होता
– केवल कहने से काम नहीं बन जाता।
लातों के भूत बातों से नहीं मानते
– मार खाकर ही काम करने वाला।
लाल गुदड़ी में नहीं छिपते
– गुण नहीं छिपते।
लिखे ईसा पढ़े मूसा
– गंदी लिखावट।
लेना एक न देना दो
– कुछ मतलब न रखना।
लोहा लोहे को काटता है
– प्रत्येक वस्तु का सदुपयोग होता है।
वहम की दवा हकीम लुकमान के पास भी नहीं है
– वहम सबसे बुरा रोग है।
विष को सोने के बरतन में रखने से अमृत नहीं हो जाता
– किसी चीज़ का प्रभाव बदल नहीं सकता।
शौकीन बुढिया मलमल का लहँगा
– अजीब शौक करना।
शक्करखोरे को शक्कर मिल ही जाता है
– जुगाड़ कर लेना।
सकल तीर्थ कर आई तुमड़िया तौ भी न गयी तिताई
– स्वाभाव नहीं बदलता।
सख़ी से सूम भला जो तुरन्त दे जवाब
– लटका कर रखने वाले से तुरन्त इंकार कर देने वाला अच्छा।
सच्चा जाय रोता आय, झूठा जाय हँसता आय
– सच्चा दुखी, झूठा सुखी।
सबेरे का भूला सांझ को घर आ जाए तो भूला नहीं कहलाता
– गलती सुधर जाए तो दोष नहीं कहलाता।
समय पाइ तरूवर फले केतिक सीखे नीर
– काम अपने समय पर ही होता है।
समरथ को नहिं दोष गोसाई
– समर्थ आदमी का दोष नहीं देखा जाता।
ससुराल सुख की सार जो रहे दिना दो चार
– रिश्तेदारी में दो चार दिन ठहरना ही अच्छा होता है।
सहज पके सो मीठा होय
– धैर्य से किया गया काम सुखकर होता है।
साँच को आँच नहीं
– सच्चे आदमी को कोई खतरा नहीं होता।
साँप के मुँह में छछूँदर
– कहावत दुविधा में पड़ना।
साँप निकलने पर लकीर पीटना
– अवसर बीत जाने पर प्रयास व्यर्थ होता है।
सारी उम्र भाड़ ही झोँका
– कुछ भी न सीख पाना।
सारी देग में एक ही चावल टटोला जाता है
– जाँच के लिए थोड़ा-सा नमूना ले लिया जाता है।
सावन के अंधे को हरा ही हरा सूझता है
– परिस्थिति को न समझना।
सावन हरे न भादों सूखे
– सदा एक सी दशा।
सिंह के वंश में उपजा स्यार
– बहादुरों की कायर सन्तान।
सिर फिरना
– उल्टी-सीधी बातें करना।
सीधे का मुँह कुत्ता चाटे
– सीधेपन का लोग अनुचित लाभ उठाते हैं।
सुनते-सुनते कान पकना
– बार-बार सुनकर तंग आ जाना।
सूत न कपास जुलाहे से लठालठी
– अकारण विवाद।
सूरज धूल डालने से नहीं छिपता
– गुण नहीं छिपता।
सूरदास की काली कमरी चढ़े न दूजो रंग
– स्वभाव नहीं बदलता।
सेर को सवा सेर
– बढ़कर टक्कर देना।
सौ दिन चोर के, एक दिन साहूकार का
– चोरी एक न एक दिन खुल ही जाती है।
सौ सुनार की एक लोहार की
– सुनार की हथौड़ी के सौ मार से भी अधिक लुहार के घन का एक मार होता है।
हज्जाम के आगे सबका सिर झुकता है
– गरज पर सबको झुकना पड़ता है।
हथेली पर दही नहीँ जमता
– कार्य होने मेँ समय लगता है।
हड्डी खाना आसान पर पचाना मुश्किल
– रिश्वत कभी न कभी पकड़ी ही जाती है।
हर मर्ज की दवा होती है
– हर बात का उपाय है।
हराम की कमाई हराम में गँवाई
– बेईमानी का पैसा बुरे कामों में जाता है।
हवन करते हाथ जलना
– भलाई के बदले कष्ट पाना।
हल्दी लगे न फिटकरी रंग आए चोखा
– बिना कुछ खर्च किए काम बनाना।
हाथ सुमरनी पेट/बगल कतरनी
– ऊपर से अच्छा भीतर से बुरा।
हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या
– प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीँ।
हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और
– भीतर और बाहर में अंतर होना।
हाथी निकल गया दुम रह गई
– थोड़े से के लिए काम अटकना।
हिजड़े के घर बेटा होना
– असंभव बात।
हीरे की परख जौहरी जानता है
– गुणवान ही गुणी को पहचान सकता है।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात
– अच्छे गुण आरम्भ में ही दिखाई देने लगते हैं।
होनी हो सो होय
– जो होनहार है, वह होगा ही।

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प्रस्तुति:–
प्रमोद खेदड़
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