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¤ महाभारत ¤
महाभारत

      महाभारत के रचयिता वेदव्यास माने जाते हैँ । वेदव्यास ने इसकी कहानी गणेश जी को सुनाई और गणेश जी ने इसे कलमबद्ध किया था।

       महाभारत हिन्दुओं का एक प्रमुख काव्य ग्रंथ है, जो हिन्दू धर्म के उन धर्मग्रन्थों का समूह है जिनकी मान्यता श्रुति से नीची श्रेणी की हैं और जो मानवों द्वारा उत्पन्न थे। इनमें वेद नहीं आते । यह स्मृति वर्ग में आता है। कभी कभी सिर्फ़ भारत कहा जाने वाला यह काव्यग्रंथ भारत का अनुपम धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और दार्शनिक ग्रंथ है। हिन्दू धर्म का यह मुख्यतम ग्रंथों में से एक है।

      यह विश्व का सबसे लंबा साहित्यिक ग्रंथ है, हालाँकि इसे साहित्य की सबसे अनुपम कॄतियों में से एक माना जाता है किन्तु आज भी यह प्रत्येक भारतीय के लिये एक अनुकरणीय स्रोत है। यह कॄति हिन्दुओं के इतिहास की एक गाथा है। पूरे महाभारत में एक लाख श्लोक हैं।

      विद्वानों मेँ महाभारत काल को लेकर विभिन्न मत है फिर भी अधिकतर विद्वान महाभारत काल को लौहयुग से जोड़ते हैं। अनुमान किया जाता है कि महाभारत में वर्णित कुरु वंश बारह सौ से आठ सौ ईसा पूर्व के दौरान शक्ति में रहा होगा। पौराणिक मान्यता को देखें तो पता लगता है कि अर्जुन के पोते (पुत्र के पुत्र) परीक्षित और महापद्मनंद का काल 382 ईसा पूर्व ठहरता है।

      माना जाता है कि अर्जुन के प्रपौत्र जन्मेजय ने बरन नगर को बसाया था।

महाभारत के पर्व

       महाभारत की मूल अभिकल्पना में अठारह की संख्या का विशिष्ट योग है। कौरव और पाण्डव पक्षों के मध्य हुए युद्ध की अवधि अठारह दिन थी। दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल भी अठ्ठारह अक्षौहिणी था। इस युद्धके प्रमुख सूत्रधार भी अठ्ठारह है। महाभारत की प्रबन्ध योजना में सम्पूर्ण ग्रन्थ को अठारह पर्वों में विभक्त किया गया है और महाभारत में भीष्म पर्व के अन्तर्गत वर्णित श्रीमद्भगवद्गीता में भी अठारह अध्याय हैं। सम्पूर्ण महाभारत अठारह पर्वों में विभक्त है। ‘पर्व’ का मूलार्थ है- गाँठ या जोड़। पूर्व कथा को उत्तरवर्ती कथा से जोड़ने के कारण महाभारत के विभाजन का यह नामकरण यथार्थ है। इन पर्वों का नामकरण, उस कथानक के महत्त्वपूर्ण पात्र या घटना के आधार पर किया जाता है। मुख्य पर्वों में प्राय: अन्य भी कई पर्व हैं। (सम्पूर्ण महाभारत में ऐसे पर्वों की कुल संख्या 100 है) इन पर्वों का पुनर्विभाजन अध्यायों में किया गया है। पर्वों और अध्यायों का आकार असमान है। कई पर्व बहुत बड़े हैं और कई पर्व बहुत छोटे हैं। अध्यायों में भी श्लोकों की संख्या अनियत है। किन्हीं अध्यायों में पचास से भी कम श्लोक हैं और किन्हीं-किन्हीं में संख्या दो सौ से भी अधिक है।
मुख्य अठारह पर्वों के नाम इस प्रकार हैं:

*. आदि पर्व
*. सभा पर्व
*. वन पर्व
*. विराट पर्व
*. उद्योग पर्व
*. भीष्म पर्व
*. द्रोण पर्व
*. कर्ण पर्व
*. शल्य पर्व
*. सौप्तिक पर्व
*. स्त्री पर्व
*. शान्ति पर्व
*. अनुशासन पर्व
*. आश्वमेधिक पर्व
*. आश्रमवासिक पर्व
*. मौसल पर्व
*. महाप्रास्थानिक पर्व
*. स्वर्गारोहण पर्व।



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