चन्द्रकान्ता – देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास ( चौथा अध्याय ) चौदहवाँ बयान सुबह को खुशी-खुशी महाराज ने दरबार किया। तेजसिंह और बद्रीनाथ भी बड़ी इज्जत से बैठाये गए। महाराज के हुक्म से जालिमखां और उसके चारों साथी दरबार में लाये गये जो हथकड़ी-बेड़ी से जकड़े हुए थे। हुक्म पा तेजसिंह जालिमखां से पूछने लगे: तेजसिंह – क्यों जी, तुम्हारा नाम ठीक-ठीक जालिमखां है या और कुछ? जालिम – इसका जवाब मैं पीछे दूँगा, पहले यह बताइये कि आप लोगों के यहाँ ऐयारों को मार डालने का कायदा है या नहीं? तेज – हमारे यहाँ क्या हिंदुस्तान भर में कोई धर्मिष्ठ हिंदू राजा ऐयार को कभी जान से न मारेगा। हाँ वह ऐयार जो अपने कायदे के बाहर काम करेगा जरूर मारा जायेगा। जालिम – तो क्या हम लोग मारे जायेंगे? तेज – यह खुशी महाराज की मगर क्या तुम लोग ऐयार हो जो ऐसी बातें पूछते हो? जालिम – हाँ हम लोग ऐयार हैं। तेज – राम-राम, क्यों ऐयारी का नाम बदनाम करते हो। तुम तो पूरे डाकू हो, ऐयारी से तुम लोगों का क्या वास्ता? जालिम – हम लोग कई पुश्त से ऐयार होते आ रहे हैं कुछ आज नये ऐयार नहीं बने। तेज – तुम्हारे बाप-दादा शायद ऐयार हुए हों, मगर तुम लोग तो खासे दुष्ट डाकुओं में से हो। जालिम – जब आपने हमारा नाम डाकू ही रखा है, तो बचने की कौन उम्मीद हो सकती है! तेज – जो हो खैर यह बताओ कि तुम हो कौन? जालिम – जब मारे ही जाना है तो नाम बताकर बदनामी क्यों लें और अपना पूरा हाल भी किसलिए कहें? हाँ इसका वादा करो कि जान से न मारोगे तो कहें। तेज – यह वादा कभी नहीं हो सकता और अपना ठीक-ठीक हाल भी तुमको झख मार के कहना होगा। जालिम – कभी नहीं कहेंगे। तेज – फिर जूते से तुम्हारे सिर की खबर खूब ली जायेगी। जालिम – चाहे जो हो। बद्री – वाह रे जूतीखोर। जालिम – (बद्रीनाथ से) ओस्ताद, तुमने बड़ा धोखा दिया, मानता हूँ तुमको! बद्री – तुम्हारे मानने से होता ही क्या है, आज नहीं तो कल तुम लोगों के सिर धड़ से अलग दिखाई देंगे। जालिम – अफसोस कुछ करने न पाए! तेजसिंह ने सोचा कि इस बकवाद से कोई मतलब न निकलेगा। हजार सिर पटकेंगे पर जालिमखां अपना ठीक-ठीक हाल कभी न कहेगा, इससे बेहतर है कि कोई तरकीब की जाये, अस्तु कुछ सोचकर महाराज से अर्ज किया, “इन लोगों को कैदखाने में भेजा जाये फिर जैसा होगा देखा जायेगा, और इनमें से वह एक आदमी (हाथ से इशारा करके) इसी जगह रखा जाये।” महाराज के हुक्म से ऐसा ही किया गया। तेजसिंह के कहे मुताबिक उन डाकुओं में से एक को उसी जगह छोड़ बाकी सबों को कैदखाने की तरफ रवाना किया। जाती दफे जालिमखां ने तेजसिंह की तरफ देख के कहा, “ओस्ताद, तुम बड़े चालाक हो। इसमें कोई शक नहीं कि चेहरे से आदमी के दिल का हाल खूब पहचानते हो, अच्छे डरपोक को चुन के रख लिया, अब तुम्हारा काम निकल जायेगा।” तेजसिंह ने मुस्कराकर जवाब दिया, “पहले इसकी दुर्दशा कर ली जाय फिर तुम लोग भी एक-एक करके इसी जगह लाए जाओगे।” जालिमखां और उसके तीन साथी तो कैदखाने की तरफ भेज दिए गए, एक उसी जगह रह गया। हकीकत में वह बहुत डरपोक था। अपने को उसी जगह रहते और साथियों को दूसरी जगह जाते देख घबरा उठा। उसके चेहरे से उस वक्त और भी बदहवासी बरसने लगी जब तेजसिंह ने एक चोबदार को हुक्म दिया कि “अंगीठी में कोयला भरकर तथा दो-तीन लोहे की सींखें जल्दी से लाओ, जिनके पीछे लकड़ी की मूठ लगी हो।” दरबार में जितने थे सब हैरान थे कि तेजसिंह ने लोहे की सलाख और अंगीठी क्यों मँगाई और उस डाकू की तो जो कुछ हालत थी लिखना मुश्किल है। चार–पाँच लोहे के सींखचे और कोयले से भरी हुई अंगीठी लाई गई। तेजसिंह ने एक आदमी से कहा, “आग सुलगाओ और इन लोहे की सींखों को उसमें गरम करो।” अब उस डाकू से न रहा गया। उसने डरते हुए पूछा, “क्यों तेजसिंह, इन सींखों को तपाकर क्या करोगे?” तेज – इनको लाल करके दो तुम्हारी दोनों आँखों में, दो दोनों कानों में और एक सलाख मुँह खोलकर पेट के अंदर पहुँचाया जायेगा। डाकू – आप लोग तो रहमदिल कहलाते हैं, फिर इस तरह तकलीफ देकर किसी को मारना क्या आप लोगों की रहमदिली में बट्टा न लगावेगा? तेज – (हँसकर) तुम लोगों को छोड़ना बड़े संगदिल का काम है, जब तक तुम जीते रहोगे हजारों की जानें लोगे, इससे बेहतर है कि तुम्हारी छुट्टी कर दी जाये। जितनी तकलीफ देकर तुम लोगों की जान ली जायेगी उतना ही डर तुम्हारे शैतान भाइयों को होगा। डाकू – तो क्या अब किसी तरह हमारी जान नहीं बच सकती? तेज – सिर्फ एक तरह से बच सकती है। डाकू – कैसे? तेज – अगर अपने साथियों का हाल ठीक-ठीक कह दो तो अभी छोड़ दिए जाओगे। डाकू – मैं ठीक-ठीक हाल कह दूँगा। तेज – हम लोग कैसे जानेंगे कि तुम सच्चे हो? डाकू – साबित कर दूँगा कि मैं सच्चा हूँ। तेज – अच्छा कहो। डाकू – सुनो कहता हूँ। इस वक्त दरबार में भीड़ लगी हुई थी। तेजसिंह ने आग की अंगीठी क्यों मँगाई? ये लोहे की सलाइयें किस काम आवेंगी? यह डाकू अपना ठीक-ठीक हाल कहेगा या नहीं? यह कौन है? इत्यादि बातों को जानने के लिए सबों की तबीयत घबरा रही थी। सभी की निगाहें उस डाकू के ऊपर थीं। जब उसने कहा कि ‘मैं ठीक-ठीक हाल कह दूँगा’ तब और भी लोगों का ख्याल उसी की तरफ जम गया और बहुत से आदमी उस डाकू की तरफ कुछ आगे बढ़ आये। उस डाकू ने अपने साथियों का हाल कहने के लिए मुस्तैद होकर मुँह खोला ही था कि दरबारी भीड़ में से एक जवान आदमी म्यान से तलवार खींचकर उस डाकू की तरफ झपटा और इस जोर से एक हाथ तलवार का लगाया कि उस डाकू का सिर धाड़ से अलग होकर दूर जा गिरा, तब उसी खून भरी तलवार को घुमाता और लोगों को जख्मी करता वह बाहर निकल गया। उस घबराहट में किसी ने भी उसे पकड़ने का हौसला न किया, मगर बद्रीनाथ कब रुकने वाले थे, साथ ही वह भी उसके पीछे दौड़े। बद्रीनाथ के जाने के बाद सैकड़ों आदमी उस तरफ दौड़े, लेकिन तेजसिंह ने उसका पीछा न किया। वे उठकर सीधो उस कैदखाने की तरफ दौड़ गए जिसमें जालिमखां वगैरह कैद किये गये थे। उनको इस बात का शक हुआ कि कहीं ऐसा न हो कि उन लोगों को किसी ने ऐयारी करके छुड़ा दिया हो। मगर नहीं, वे लोग उसी तरह कैद थे। तेजसिंह ने कुछ और पहरे का इंतजाम कर दिया और फिर तुरंत लौटकर दरबार में चले आये। पहले दरबार में जितनी भीड़ लगी हुई थी अब उससे चौथाई रह गई। कुछ तो अपनी मर्जी से बद्रीनाथ के साथ दौड़ गए, कितनों ने महाराज का इशारा पाकर उसका पीछा किया था। तेजसिंह के वापस आने पर महाराज ने पूछा, “तुम कहाँ गए थे?” तेज – मुझे यह फिक्र पड़ गई थी कि कहीं जालिमखां वगैरह तो नहीं छूट गए, इसलिए कैदखाने की तरफ दौड़ा गया था। मगर वे लोग कैदखाने में ही पाए गए। महा – देखें बद्रीनाथ कब तक लौटते हैं और क्या करके लौटते हैं? तेज – बद्रीनाथ बहुत जल्द आवेंगे क्योंकि दौड़ने में वे बहुत ही तेज हैं। आज महाराज जयसिंह मामूली वक्त से ज्यादा देर तक दरबार में बैठे रहे। तेजसिंह ने कहा भी– “आज दरबार में महाराज को बहुत देर हुई?” जिसका जवाब महाराज ने यह दिया कि “जब तक बद्रीनाथ लौटकर नहीं आते या उनका कुछ हाल मालूम न हो ले हम इसी तरह बैठे रहेंगे।” *–*–* पन्द्रहवाँ बयान दो घंटे बाद दरबार के बाहर से शोरगुल की आवाज आने लगी। सबों का ख्याल उसी तरफ गया। एक चोबदार ने आकर अर्ज किया कि पण्डित बद्रीनाथ उस खूनी को पकड़े लिए आ रहे हैं। उस खूनी को कमंद से बांधे साथ लिए हुए पण्डित बद्रीनाथ आ पहुँचे। महा – बद्रीनाथ, कुछ यह भी मालूम हुआ कि यह कौन है? बद्री – कुछ नहीं बताता कि कौन है और न बताएगा। महा – फिर? बद्री – फिर क्या? मुझे तो मालूम होता है कि इसने अपनी सूरत बदल रखी है। पानी मँगवाकर उसका चेहरा धुलवाया गया, अब तो उसकी दूसरी ही सूरत निकल आई। भीड़ लगी थी, सबों में खलबली पड़ गई, मालूम होता था कि इसे सब कोई पहचानते हैं। महाराज चौंक पड़े और तेजसिंह की तरफ देखकर बोले, “बस-बस मालूम हो गया, यह तो नाज़िम का साला है, मैं ख्याल करता हूँ कि जालिमखां वगैरह जो कैद हैं वे भी नाज़िम और अहमद के रिश्तेदार ही होंगे। उन लोगों को फिर यहाँ लाना चाहिए।” महाराज के हुक्म से जालिमखां वगैरह भी दरबार में लाए गए। बद्री – (जालिमखां की तरफ देखकर) अब तुम लोग पहचाने गये कि नाज़िम और अहमद के रिश्तेदार हो, तुम्हारे साथी ने बता दिया। जालिमखां इसका कुछ जवाब दिया ही चाहता था कि वह खूनी (जिसे बद्रीनाथ अभी गिरफ्तार करके लाए थे) बोल उठा, “जालिमखां, तुम बद्रीनाथ के फेर में मत पड़ना। यह झूठे हैं, तुम्हारे साथी को हमने कुछ कहने का मौका नहीं दिया, वह बड़ा ही डरपोक था, मैंने उसे दोजख में पहुँचा दिया। हम लोगों की जान चाहे जिस दुर्दशा से जाये मगर अपने मुँह से अपना कुछ हाल कभी न कहना चाहिए।” जालिम – (जोर से) ऐसा ही होगा। इन दोनों की बातचीत से महाराज को बड़ा क्रोध आया। आँखें लाल हो गईं, बदन काँपने लगा। तेजसिंह और बद्रीनाथ की तरफ देखकर बोले, “बस हमको इन लोगों का हाल मालूम करने की कोई जरूरत नहीं, चाहे जो हो, अभी, इसी वक्त, इसी जगह, मेरे सामने इन लोगों का सिर धड़ से अलग कर दिया जायेँ।” हुक्म की देर थी, तमाम शहर इन डाकुओं के खून का प्यासा हो रहा था, उछल-उछलकर लोगों ने अपने-अपने हाथों की सफाई दिखाई। सबों की लाशें उठाकर फेंक दी गईं। महाराज उठ खड़े हुए। तेजसिंह ने हाथ जोड़कर अर्ज किया - “महाराज, मुझे अभी तक कहने का मौका नहीं मिला कि यहाँ किस काम के लिए आया था और न अभी बात कहने का वक्त है।” महा – अगर कोई जरूरी बात हो तो मेरे साथ महल में चलो! तेज – बात तो बहुत जरूरी है मगर इस समय कहने को जी नहीं चाहता, क्योंकि महाराज को अभी तक गुस्सा चढ़ा हुआ है और मेरी भी तबीयत खराब हो रही है, मगर इस वक्त इतना कह देना मुनासिब समझता हूँ कि जिस बात के सुनने से आपको बेहद खुशी होगी मैं वही बात कहूँगा। तेजसिंह की आखिरी बात ने महाराज का गुस्सा एकदम ठंडा कर दिया और उनके चेहरे पर खुशी झलकने लगी। तेजसिंह का हाथ पकड़ लिया और महल में ले चले, बद्रीनाथ भी तेजसिंह के इशारे से साथ हुए। तेजसिंह और बद्रीनाथ को साथ लिए हुए महाराज अपने खास कमरे में गए और कुछ देर बैठने के बाद तेजसिंह के आने का कारण पूछा। सब हाल खुलासा कहने के बाद तेजसिंह ने कहा– “अब आप और महाराज सुरेन्द्रसिंह खोह में चलें और सिद्धनाथ योगी की कृपा से कुमारी को साथ लेकर खुशी-खुशी लौट आवें।” तेजसिंह की बात से महाराज को कितनी खुशी हुई इसका हाल लिखना मुश्किल है। लपककर तेजसिंह को गले लगा लिया और कहा, “तुम अभी बाहर जाकर हरदयालसिंह को हमारे सफर की तैयारी करने का हुक्म दो और तुम लोग भी स्नान-पूजा करके कुछ खाओ-पीओ। मैं जाकर कुमारी की माँ को यह खुशखबरी सुनाता हूँ।” आज के दिन का तीन हिस्सा तरद्दुद-रंज, गुस्से और खुशी में गुजर गया, किसी के मुँह में एक दाना अन्न नहीं गया था। तेजसिंह और बद्रीनाथ महाराज से विदा हो दीवान हरदयालसिंह के मकान पर गये और महाराज ने महल में जाकर कुमारी चन्द्रकान्ता की माँ को कुमारी से मिलने की उम्मीद दिलाई। अभी घंटे भर पहले वह महल और ही हालत में था और अब सबों के चेहरे पर हँसी दिखाई देने लगी। होते-होते यह बात हजारों घरों में फैल गयी कि महाराज कुमारी चन्द्रकान्ता को लाने के लिए जाते हैं। यह भी निश्चय हो गया कि आज थोड़ी सी रात रहते महाराज जयसिंह नौगढ़ की तरफ कूच करेंगे। *–*–* « पीछे जायेँ | आगे पढेँ » • चन्द्रकान्ता [ होम पेज ] |
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