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चन्द्रकान्ता – देवकीनन्दन खत्री रचित उपन्यास

( दूसरा अध्याय )

चौबीसवाँ बयान

      रात भर जगन्नाथ ज्योतिषी रमल फेंकने और विचार करने में लगे रहे। कुँअर वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह और देवीसिंह भी रात भर पास ही बैठे रहे। सब बातों को देख भाल कर ज्योतिषी जी ने कहा, “रमल से मालूम होता है कि इस तिलिस्म के तोड़ने की तर्कीब एक पत्थर पर खुदी हुई है और वह पत्थर इसी खण्डहर में किसी जगह पड़ा हुआ है। उसको तलाश करके निकालना चाहिए तब सब पता लगेगा। स्नान पूजा से छुट्टी पा कुछ खा-पीकर इस तिलिस्म में घूमना चाहिए, जरूर उस पत्थर का भी पता लगेगा।”

       सब कामों से छुट्टी पाकर दोपहर को सब लोग खण्डहर में घुसे। देखते-भालते उसी चबूतरे के पास पहुँचे जिस पर पत्थर का वह आदमी सोया हुआ था जिसे देवीसिंह ने धौल जमाई थी। उस आदमी को फिर उसी जगह उसी तरह सोता पाया।

       ज्योतिषीजी ने तेजसिंह से कहा, “यह देखो ईंटों का ढेर लगा हुआ है, शायद इसे चपला ने इकट्ठा किया हो और इसके ऊपर चढ़ कर इस आदमी को देखा हो। तुम भी इस पर चढ़ के खूब गौर से देखो तो सही किताब में जो इसके हाथ में है क्या लिखा है? तेजसिंह ने ऐसा ही किया और ईंट के ढेर पर चढ़ कर देखा। उस किताब में लिखा थाः

       ८ पहल – ५ – अंक 
       ६ हाथ – ३ – अंगुल
       जमा पूँजी-०- जोड़, ठीक नाप तोड़।

       तेजसिंह ने ज्योतिषी जी को समझाया कि इस पत्थर की किताब में ऐसा लिखा है, मगर इसका मतलब क्या है कुछ समझ में नहीं आता। ज्योतिषीजी ने कहा, “मतलब भी मालूम हो जायगा, तुम एक कागज पर इसकी नकल उतार लो।”

       तेजसिंह ने अपने बटुए में से कागज कलम दावात निकाल कर पत्थर की किताब में जो लिखा था उसकी नकल उतार ली। ज्योतिषीजी ने कहा, “अब घूम कर देखना चाहिए कि इस मकान में कहीं आठ पहल का कोई खम्भा या चबूतरा किसी जगह पर है या नहीं।”

      सब कोई उस खण्डहर में घूम-घूम कर आठ पहल का खम्भा या चबूतरा तलाश करने लगे। घूमते-घूमते उस दालान में पहुँचे जहाँ तहखाना था। एक सिरा कमन्द का तहखाने के किवाड़ के साथ और दूसरा सिरा जिस खम्भे के साथ बँधा हुआ था, उसी खम्भे को आठ पहल का पाया। उस खम्भे के ऊपर कोई छत न थी, ज्योतिषीजी ने कहा,“इसकी लम्बार हाथ से नापनी चाहिए।”

      तेजसिंह ने नापा, ६ हाथ ७ अंगुल हुआ, देवीसिंह ने नापा, ६ हाथ ५ अंगुल हुआ, बाद इसके ज्योतिषीजी ने नापा ६ हाथ १० अंगुल पाया, सब के बाद कुँअर वीरेन्द्रसिंह ने नापा, ६ हाथ ३ अंगुल हुआ।

      ज्योतिषीजी ने खुश होकर कहा, “बस यही खम्भा है, इसी का पता इस किताब में लिखा है, इसी के नीचे ‘जमा पूँजी’ यानी यह पत्थर जिसमें तिलिस्म तोड़ने की तर्कीब लिखी हुई है गड़ा है। यह भी मालूम हो गया कि यह तिलिस्म कुमार के हाथ से ही टूटेगा, क्योंकि उस किताब में जिसकी नकल कर लाए हैं उसका नाप ६ हाथ ३ अंगुल लिखा है जो कुमार ही के हाथ से हुआ, इससे मालूम होता है कि यह तिलिस्म कुमार ही के हाथ से फतह होगा। अब इस कमन्द को खोल डालना चाहिए जो इस खम्भे और किवाड़ के पल्ले से बँधी हुई है।”

       तेजसिंह ने कमन्द खोलकर अलग किया, ज्योतिषीजी ने तेजसिंह की तरफ देख कहा, “सब बातें तो मिल गईं, आठ पहल भी हुआ और नाप ६ हाथ३ अंगुल भी है, यह देखिए, इस तरफ ५ का अंक भी दिखाई देता है, बाकी रह गया ‘ठीक नाप तोड़’ सो कुमार के हाथ से इसका नाप भी ठीक हुआ, अब यही इसको तोड़ें।”

       कुँअर वीरेन्द्रसिंह ने उसी जगह से एक बड़ा भारी पत्थर (चूने का ढोका) ले लिया जिसका मसाला सख्त और मजबूत था। इसी ढोके को ऊँचा करके जोर से उस खम्भे पर मारा जिससे वह खम्भा हिल उठा, दो-तीन दफे में बिल्कुल कमजोर हो गया, तब कुमार ने बगल में दबाकर जोर किया और जमीन से निकाल डाला। खम्भा उखाड़ने पर उसके नीचे एक लोहे का सन्दूक निकला जिसमें ताला लगा हुआ था। बड़ी मुश्किल से इसका ताला तोड़ा। भीतर एक और सन्दूक निकला उसका भी ताला तोड़ा। और एक सन्दूक निकला। इसी तरह दर्जे-बदर्जे सात सन्दूक उसमें से निकले। सातवें सन्दूक में एक पत्थर निकला जिस पर कुछ लिखा था, कुमार ने उसे निकाल लिया और पढ़ा, यह लिखा हुआ था -

       “सम्हाल के काम करना, तिलिस्म तोड़ने में जल्दी मत करना, अगर तुम्हारा नाम वीरेन्द्रसिंह है तो यह दौलत तुम्हारे ही लिए है!! बगुले के मुँह की तरफ जमीन पर जो पत्थर संगमरमर का जड़ा है वह पत्थर नहीं मसाला जमाया हुआ है। उसको उखाड़ कर सिरके में खूब महीन पीस कर बगुले के सारे अंग पर लेप कर दो। वह भी मसाले ही का बना हुआ है, दो घण्टे में बिल्कुल गल कर बह जायगा। उसके नीचे जो कुछ तार पहिए-पुर्जे हों सब तोड़ डालो। नीचे एक कोठरी मिलेगी जिसमें बगुले के बिगड़ जाने से बिल्कुल उजाला हो गया होगा। उस कोठरी से एक रास्ता नीचे उस कुँए में गया है जो पूरब वाले दालान में है। यहाँ भी मसाले से बना बुड्ढा आदमी हाथ में किताब लिए दिखाई देगा। उसके हाथ से किताब ले लो, मगर एकाएक मत छीनो नहीं तो धोखा खाओगे! पहिले उसका दाहिना बाजू पकड़ो, वह मुँह खोल देगा, उसका मुँह काफूर से खूब भर दो, थोड़ी ही देर में वह भी बह जाएगा, तब किताब ले लो। उसके सब पन्ने भोजपत्र के होंगे। जो कुछ उसमें लिखा हो वैसा करो। विक्रम।”

      कुमार ने पढ़ा, सभी ने सुना। घण्टे भर तक तो सिवाय तिलिस्म बनाने वाले की तारीफ के किसी की जुबान से दूसरी बात न निकली। बाद इसके यह राय ठहरी कि अब दिन भी थोड़ा रह गया है, डेरे में चल कर आराम किया जाए, कल सवेरे ही कुल कामों से छुट्टी पाकर तिलिस्म की तरफ झुकें।

       तिलिस्म किसको कहते हैं? यह क्या चीज है? उसमें आदमी कैसे फँसता है? कुँअर वीरेन्द्रसिंह उसे क्योंकर तोड़ेंगे? इत्यादि बातों को जानने और देखने के लिए दूर-दूर के बहुत से आदमी उस जगह इकट्ठे हुए जहाँ कुमार का लश्कर उतरा हुआ था मगर खौफ के मारे खण्डहर के अन्दर कोई पैर नहीं रखता था, बाहर से ही देखते थे।

       पण्डित बद्रीनाथ, अहमद और नाजिम को साथ लेकर महाराज शिवदत्त को छुड़ाने गए थे, तहखाने में शेर के मुँह से जुबान खींच किवाड़ खोलना चाहा मगर न खुल सका, क्योंकि यहाँ तेजसिंह ने दोहरा ताला लगा दिया था। जब कोई काम न निकला तब वहाँ से लौट कर विजयगढ़ गए, ऐयारी की फिक्र में थे कि यह खबर कुँअर वीरेन्द्रसिंह की उन्होंने भी सुनी। लौट कर इसी जगह पहुँचे।

      पन्नालाल, रामनारायण और चुन्नीलाल भी उसी ठिकाने जमा हुए ‌और इन सभों की यह राय होने लगी कि किसी तरह तिलिस्म तोड़ने में बाधा डालनी चाहिए। इसी फिक्र में ये लोग भेष बदल कर इधर-उधर तथा लश्कर में घूमने लगे।

*–*–*

पच्चीसवाँ बयान

      दूसरे दिन स्नान पूजा से छुट्टी पाकर कुँअर वीरेन्द्रसिंह, तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी फिर उस खण्डहर में घुसे, सिरका साथ में लेते गए। कल जो पत्थर निकला था उस पर जो कुछ लिखा था फिर पढ़ के याद कर लिया और उसी लिखने के बमूजिब काम करने लगे। बाहर दरवाजे पर बल्कि खण्डहर के चारों तरफ पहरा बैठा हुआ था।

       बगुले के पास गए, उसके सामने की तरफ जो सफेद पत्थर जमीन में गड़ा हुआ था, जिस पर पैर रखने से बगुला मुँह खोल देता था, उखाड़ लिया। नीचे एक और पत्थर कमानी पर जड़ा हुआ पाया। सफेद पत्थर को सिरके में खूब बारीक पीस कर बगुले के सारे बदन में लगा दिया। देखते-देखते वह पानी होकर बहने लगा, साथ ही इसके एक खुशबू सी फैलने लगी। दो घण्टे में बगुला गल गया। जिस खम्भे पर बैठा था वह भी बिल्कुल पिघल गया, नीचे की कोठरी दिखाई देने लगी जिसमें उतरने के लिए सीढ़ियाँ थीं और इधर-उधर बहुत से तार और कलपुर्जे वगैरह लगे हुए थे। सभों को तोड़ डाला और चारों आदमी नीचे उतरे, भीतर ही भीतर उस कुएँ में जा पहुँचे, जहाँ हाथ में किताब लिए बुड्ढा आदमी बैठा था, सामने एक पत्थर की चौकी पर पत्थर ही के बने रंग-बिरंगे फूल रक्खे हुए देखे। बाजू पकड़ते ही बुड्ढे ने मुँह खोल दिया, तेजसिंह से काफूर लेकर कुमार ने उसके मुँह में भर दिया। घण्टे भर तक ये लोग उसी जगह बैठे रहे। तेजसिंह ने एक मशाल खूब मोटी पहिले ही से बाल ली थी। जब बुड्ढा गल गया किताब जमीन पर गिर पड़ी, कुमार ने उठा लिया। उसकी जिल्द भी जिस पर कुछ लिखा हुआ था, भोजपत्र ही की थी। कुमार ने पढ़ा, उस पर यह लिखा हुआ पाया -

       “इन फूलों को भी उठा लो, तुम्हारे ऐयारों के काम आवेंगे। इनके गुण भी इसी किताब में लिखे हुए हैं, इस किताब को डेरे में ले जाकर पढ़ो, आज और कोई काम मत करो।”

       तेजसिंह ने बड़ी खुशी से उन फूलों को उठा लिया जो गिनती में छः थे। उस कुएँ में से कोठरी में आकर ये लोग ऊपर निकले और धीरे-धीरे खण्डहर से बाहर हो गए।

       थोड़ा दिन बाकी था जब कुँअर वीरेन्द्रसिंह अपने डेरे में पहुँचे। यह राय ठहरी कि रात में इस किताब को पढ़ना चाहिए, मगर तेजसिंह को यह जल्दी थी कि किसी तरह फूलों के गुण मालूम हों। कुमार से कहा, “इस वक्त इन फूलों के गुण पढ़ लीजिए बाकी रात को पढ़ियेगा।” कुमार ने हँस कर कहा, “जब कुल तिलिस्म टूट लेगा तब फूलों के गुण पढ़े जायेंगे।”

      तेजसिंह ने बड़ी खुशामद की, आखिर लाचार होकर कुमार ने जिल्द खोली। उस वक्त सिवाय इन चारों आदमियों के उस खेमे में और कोई न था, सब बाहर कर दिए गए। कुमार पढ़ने लगे -

       फूलों के गुण
[1] गुलाब के फूल – अगर पानी में घिस कर किसी को पिलाया जाय तो उसे सात रोज तक किसी तरह की बेहोशी असर न करेगी।

[2] मोतिए का फूल – अगर पानी में थोड़ा सा घिस कर किसी कुएँ में डाल दिया जाय तो चार पहर तक उस कुएँ का पानी बेहोशी का काम देगा, जो पियेगा बेहोश हो जायगा, इसकी बेहोशी आध घण्टे बाद चढ़ेगी।

       दो ही फूलों के गुण पढ़े थे कि तीनों ऐयार मारे खुशी के उछल पड़े, कुमार ने किताब बन्द कर दी और कहा, “बस अब न पढ़ेंगे।” अब तेजसिंह हाथ जोड़ रहे हैं, कसमें देते जाते हैं कि किसी तरह परमेश्वर के वास्ते पढ़िये, आखिर यह सब आप ही के काम आयेगा, हम लोग आप ही के ताबेदार हैं। थोड़ी देर तक दिल्लगी करके कुमार ने फिर पढ़ना शुरू किया -

[3] ओरहुर का फूल – पानी में घिस कर पीने से चार रोज तक भूख न लगे।

[4] कनेर का फूल – पानी में घिसकर पैर धो लेँ तो थकावट या राह चलने की सुस्ती निकल जाय।

[5] गुलदावदी का फूल – पानी में घिस कर आँखों में अंजन करे तो अँधेरे में दिखाई दे।

[6] केवड़े का फूल – तेल में घिसकर लगायें तो सर्दी असर न करे, कत्थे के पानी में घिस कर किसी को पिलाएं तो सात रोज तक किसी किस्म का जोश उसके बदन में बाकी न रहे।

       इन फूलों को बड़ी खुशी से तेजसिंह ने अपने बटुए में डाल लिया, देवीसिंह और ज्योतिषी जी माँगते ही रहे मगर देखने को भी न दिया।

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