महाभारत - 16 इन्द्र द्वारा कर्ण से कवच-कुण्डल लेना अर्जुन के पिता और देवराज इन्द्र को इस बात का ज्ञान होता है कि कर्ण युद्धक्षेत्र में तब तक अपराजेय और अमर रहेगा जब तक उसके पास उसके कवच और कुण्डल रहेंगे, जो जन्म से ही उसके शरीर पर थे। इसलिए जब कुरुक्षेत्र का युद्ध आसन्न था, तब इन्द्र ने यह ठानी कि वह कवच और कुण्डल के साथ तो कर्ण को युद्धक्षेत्र में नहीं जाने देंगे। उन्होनें ये योजना बनाई की वह मध्याह्न में जब कर्ण सूर्य देव की पूजा कर रहा होता है तब वह एक भिक्षुक बनकर उससे उसके कवच-कुण्डल माँग लेंगें। सूर्यदेव इन्द्र की इस योजना के प्रति कर्ण को सावधान भी करते हैं, लेकिन वह उन्हें धन्यवाद देकर कहता है कि उस समय यदि कोई उससे उसके प्राण भी माँग ले तो वह मना नहीं करेगा। तब सूर्यदेव कहते है कि यदि वह स्ववचनबद्ध है, तो वह इन्द्र से उनका अमोघास्त्र माँग ले। तब अपनी योजनानुसार इन्द्रदेव एक भिक्षुक का भेष बनाकर कर्ण से उसका कवच और कुण्डल माँग लेते हैं। चेताए जाने के बाद भी कर्ण मना नहीं करता और हर्षपूर्वक अपना कवच-कुण्डल दान कर देता है। तब कर्ण की इस दानप्रियता पर प्रसन्न होकर वह उसे कुछ माँग लेने के लिए कहते हैं, लेकिन कर्ण यह कहते हुए कि "दान देने के बाद कुछ माँग लेना दान की गरिमा के विरुद्ध है", मना कर देता है। तब इन्द्र उसे अपना शक्तिशाली अस्त्र वासवी प्रदान करते है जिसका प्रयोग वह केवल एक बार ही कर सकता था। इसके बाद से कर्ण का एक और नाम वैकर्तन पड़ा, क्योंकि उसने बिना संकुचित हुए अपने शरीर से अपने कवच-कुण्डल काट कर दान दे दिए। भीम और हनुमान पांडवोँ को वन मेँ रहते हुए काफी समय बीत गया था। एक दिन की बात है। मौसम बड़ा सुहावना था। ठंडी ठंडी हवा चल रही थी। हवा के साथ साथ किसी फूल की सुगन्ध भी वन मेँ फैल रही थी। सुगन्ध इतनी मोहक और अद्भुत थी कि द्रौपदी ने तुरन्त पूछताछ की कि किस फूल की सुगन्ध है। जब उसको मालूम हुआ कि वह सुगन्ध एक बहुत दुर्लभ फूल की है तो उनका मन उस फूल को पाने के लिए मचल उठा। लेकिन उस फूल को लाये कौन ? भीम के सिवाय इस काम को और कोई नहीँ कर सकता था । उन्होँने भीम से फूल लाने की बात कही। भीम एक फूल के लिए अपना समय नहीँ बर्बाद करना चाहते थे। उनको मालूम भी नहीँ था कि फूल कहां उगता है। उन्होँने टालमटोल की। द्रौपदी को बहुत बुरा लगा। उसकी आँखोँ मेँ आँसू आ गये। कहने लगी, “मैँ कभी कुछ नहीँ मांगती। एक जरा सी चीज मांगी, वह भी आपने लाने से मना कर दिया। अगर आपको सचमुच मुझसे प्रेम होता तो आप मेरी बात न टालते।” भीम द्रौपदी की आँखोँ मेँ आँसू नहीँ देख सके। उन्होँने फूल लाने का वचन दिया। दूसरे ही दिन भीम दुर्लभ फूल की खोज मेँ निकल पड़े। उन्होँने कई लोगोँ से उस फूल का अता-पता पूछा लेकिन कोई नहीँ बता सका। भीम ने सोचा कि हवा की दिशा मेँ ही चलना ठीक होगा, क्योँकि फूल की सुगन्ध हवा के साथ ही आयी थी। चलते चलते भीम एक घने जंगल मेँ पहुंच गये। जंगल इतना घना था कि चलने का रास्ता भी नहीँ था। भीम अपनी विशाल गदा से पेड़ोँ को गिराते और चट्टानोँ को तोड़ते हुए आगे बढ़े। इससे इतनी जोरोँ की आवाज हुई कि सभी जंगली जानवर डर के मारे जान बचाकर भाग निकले। जंगल पार करने के बाद भीम एक सुन्दर बाग मेँ पहुंचे। बाग मेँ रंग-बिरंगे फूल खिले थे और फलोँ से लदे पेड़ खड़े थे। एक घने जंगल के बीच इतना सुन्दर बाग देख कर भीम चकित रह गये। बाग के बीचोँ बीच एक सड़क थी। भीम उस सड़क पर चलने लगे तो एकाएक उन्होँने क्या देखा कि रास्ते के ठीक बीचोँ बीच एक बन्दर लेटा पड़ा है। इस तरह से एक बन्दर का बीच रास्ते मेँ लेटना भीम को बहुत अखरा। वह बोले, “ऐ बन्दर! तेरी इतनी हिम्मत कि मेरा रास्ता रोके? फौरन रास्ता छोड़ और उठ कर किनारे हो जा।” भीम की बात सुन कर भी बन्दर चुपचाप ऐसे पड़ा रहा जैसे उसने सुना ही न हो। “अरे ! तूने सुना नहीँ ?” भीम चिल्लाये, “तुरन्त उठ जा, वरना मैँ तेरी भुस भरी खोपड़ी तोड़ दूँगा।” बन्दर ने धीरे से आँखेँ खोलकर भीम की ओर देखा और बोला, “मैँ इतना बूढ़ा हो गया हूँ कि मुझ मेँ उठने की ताकत ही नहीँ रही। तुम मुझसे कहने के बजाय एक तरफ से घूम कर क्योँ नहीँ चले जाते ?” भीम ने कहा, “अरे ओ बूढ़े बन्दर ! पता भी है तू किससे बातेँ कर रहा है ? तू ने भीम के बारे मेँ सुना है, पांडवोँ मेँ सबसे ताक़तवर भीम के बारे मेँ ? मैँ ही भीम हूँ। मैँ हमेशा सीधी सड़क चलता हूँ। मैँ किसी को भी अपनी राह नहीँ रोकने देता और न कभी हार मानता हूँ।” इस पर बन्दर बोला, “मैँ बहुत बूढ़ा हो गया हूँ और बीमार भी हूँ। फिर भी तुम्हारी डीँग सुनकर मुझे हँसी आ रही है। तुम ने कहा कि तुम कभी हार नहीँ मानते, लेकिन जब कौरवोँ ने तुम्हेँ, तुम्हारे अपने ही घर से निकाल भगाया तब तुम्हेँ क्या हो गया था, जो अब जंगल मेँ जानवरोँ की तरह मारे मारे फिर रहे हो ?” “बेवकूफी की बातेँ बन्द करो”, भीम ने चिल्लाते हुए कहा, “पेड़ोँ पर इधर उधर छलांग लगाने वाला, तुझ जैसा मूर्ख बन्दर, भीम जैसे आदमी के बल को क्या जाने ? शायद तुम ने सुना नहीँ कि भीम ने कैसी बड़ी बड़ी लड़ाइयां जीती हैँ और कैसे बड़े बड़े राक्षसोँ का काम तमाम किया है ?” “तुम्हारा बल ?” बन्दर ने मुंह चिढ़ाते हुए कहा, “जब दुशासन ने तुम्हारी पत्नी का अपमान किया था तब तुम्हारा बल कहां गया ? उस समय तो तुम चुपचाप खड़े ताकते रहे। क्या तब तुम्हारी हिम्मत घास चरने चली थी ?” भीम ने कहा, “अगर तुम्हारी जगह कोई बलवान आदमी मुझ से ऐसी बातेँ करता तो मैँ उसे जता देता कि मैँ कौन हूँ। यदि लोग सुनेँगे कि भीम ने एक छोटे बन्दर को मार डाला तो वे मुझ पर हंसेँगे।” इस पर बन्दर बोला, “तुम्हारे जैसे बड़े आदमी को एक छोटे बन्दर से झगड़ा नहीँ करना चाहिए। तुम मेरे ऊपर से मजे से जा सकते हो। और अगर तुम्हेँ इस तरह से जाना पसन्द नहीँ, तो तुम मेरी पूंछ पकड़ कर एक तरफ सरका दो, और चले जाओ। पर शायद तुम्हेँ मेरी भद्दी पूंछ छूना अच्छा न लगे, इसलिए तुम अपनी गदा से उसे सरका सकते हो।” भीम ने पूछा, “यदि तुम्हारी पूंछ टूट जाये तो ?” बन्दर ने जवाब दिया, “अगर तुम्हारी गदा टूट जाये तो ?” भीम बहुत परेशान हो गये । उन्हेँ जाने की जल्दी थी, इसलिए उन्होँने सोचा कि बन्दर की पूंछ सरका कर चले जाना ही ठीक होगा। वह अपनी विशाल गदा से उस की पूंछ को एक तरफ हटाने लगे । लेकिन हजार कोशिश करने पर भी पूंछ टस से मस नहीँ हुई। भीम ने और जोर लगाया पर पूंछ जरा भी नहीँ हिली। इस पर भीम ने अपना सारा जोर लगा दिया पर पूंछ बाल भर भी नहीँ खिसकी। भीम ने चाहा कि गदा को पूंछ के नीचे से निकाल लेँ और दूसरी ओर से सरकाएं। लेकिन गदा बाहर निकल ही न सकी। वह बन्दर की पूंछ के नीचे बुरी तरह दब गयी थी। भीम ने उसे बाहर को खींचा। एक बार, दस बार, सौ बार खीँचा, पर गदा बाहर नहीँ निकल सकी। वह खीँचते खीँचते थक कर चूर हो गये, गदा नहीँ निकली। अब करेँ तो क्या ? अपनी गदा को वहाँ छोड़ भी नहीँ सकते थे। उन्होँने बूढ़े बन्दर की ओर ताका। बन्दर शांति से पड़ा मुस्करा रहा था। हैरान होकर भीम सोचने लगे कि मेरी इतनी बड़ी ताकत के सामने एक छोटा सा बन्दर टिका कैसे रहा ? जब लोग सुनेँगे कि भीम एक बन्दर से हार गया तो क्या कहेँगे ? हो न हो, इस बन्दर के पास कोई जादुई ताकत है। या यह बन्दर के भेष मेँ कोई दानव है जो मेरी ताकत को परखना चाहता है। भीम चीख कर बोले, “मूढ़ बन्दर तू है कौन ? तू बन्दर हो ही नहीँ सकता। किसी भी बन्दर मेँ कभी इतनी ताकत नहीँ होती। तू या तो कोई जादूगर है या कोई राक्षस। मैँ तुझे अभी बताता हूँ कि तुझ जैसोँ से कैसे निबटा जाता है। फौरन सामने आ जा और हिम्मत हो तो मेरे साथ द्वन्द्व युद्ध कर।” “मैँ न तो राक्षस हूँ और न जादू ही जानता हूँ। मैँ तो उस पुरुषोत्तम श्री राम का एक छोटा सा सेवक हूँ, जिस ने लंकापति रावण को मारा था।” ऐसा कहकर उस बूढ़े बन्दर ने हनुमान का विराट रूप धारण कर लिया। यह सुनकर भीम चकित तो हुए पर साथ ही उन्हेँ हनुमान जी से भेँट होने की खुशी भी बहुत हुई। उन्होँने आगे बढ़कर हनुमान के चरण छुए और क्षमा मांगी। हनुमान ने भीम को प्यार से गले लगाया और कहा, “मैँ बहुत दिनोँ से तुमसे मिलना चाहता था। मैँने जब तुम्हेँ दूर से आता देखा तो तुम्हेँ रोकने के लिए रास्ता घेर कर लेट गया। फिर उस के बाद जो कुछ हुआ वह तो सब मजाक था। मैँ जानता हूँ कि तुम किसी जरुरी काम से जा रहे हो। तुम्हेँ वैसे ही देर हो गयी है। मैँ तुम्हेँ अधिक देर रोकना नहीँ चाहता। इसलिए तुम अब झटपट चल दो। वैसे यह तो बताओ कि तुम क्या करने जा रहे हो ?” भीम ने हनुमान को अपनी यात्रा का उद्देश्य बताया। इस पर हनुमान बोले, “अरे, मैँने तो समझा था कि तुम किसी दैत्य को मारने या किसी युद्ध पर जा रहे हो ! तो, महापराक्रमी भीम अपनी पत्नी के लिये फूल लाने जा रहे हैँ। वाह! कितने बड़े साहस का काम है। अच्छा जाओ, मैँ अब और नहीँ रोकूँगा। लेकिन क्या तुम जानते हो कि फूल कहाँ उगता है ?” हनुमान ने भीम को उस जगह का पता बता दिया, जहाँ वह अद्भुत सुगन्ध वाला फूल उगा था। यही नहीँ, वहाँ तक पहुँचने का उपाय भी बताया। हनुमान से विदा लेकर भीम आगे बढ़े। जिस फूल की खोज मेँ भीम जा रहे थे, वह दुर्लभ फूल एक बड़ी झील मेँ उगा था जो कुबेर के बाग मेँ थी। झील मेँ और भी बहुत से फूल थे। फूल इतने अनमोल थे कि कुबेर ने उनकी रक्षा के लिए एक सेना तैनात कर रखी थी। इस पर भी यदि कोई आदमी उस झील मेँ घुस जाये तो उसे मारने के लिए झील मेँ भयानक मगर रख गये थे। चलते चलते भीम कुबेर के बाग मेँ पहुँचे। उनके पहुँचते ही बाग के रखवालोँ ने उनको ललकारा, और उन पर वार कर दिया। भीम इतने बलवान थे कि उन्होँने अपनी भारी गदा से मार मार कर एक एक को भगा दिया। उसके बाद भीम झील पर पहुँचे। उन्हेँ देखते ही झील के मगरोँ ने झपट कर उन पर हमला किया। लेकिन भीम ने इतनी कुशलता से गदा चलाई कि मगर भी डर कर भाग गये। फिर वह झील के पानी मेँ उतरे और ढेर सारे फूल तोड़कर किनारे आ गये। भीम के किनारे पर आते ही बाग के रक्षक बहुत से और सैनिकोँ को लेकर आ धमके, परन्तु भीम ने उन सब को भी मार भगाया। इस प्रकार अनेक संकटोँ का सामना करके, दुर्लभ फूलोँ का गुच्छा ले कर, भीम द्रौपदी के पास वापस लौट आये। सारा महल और मीलोँ तक की धरती फूलोँ की सुगन्ध से महक उठी। फूलोँ को पाकर द्रौपदी फूली न समायीँ। इस प्रकार पांडवोँ के वनवास के बारह वर्ष पूरे होने वाले थे तो युधिष्ठिर को अज्ञातवास की चिन्ता हुई। युधिष्ठिर ने कहा कि मत्स्य देश बड़ा ही पवित्र देश है और वहाँ के राजा विराट के पास हमेँ अपना अज्ञातवास काटना चाहिए। इस प्रकार से सभी पांडव विराट के पास रहने की योजना बनाने लगे। « पीछे जायेँ | आगे पढेँ » |
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